पृष्ठ:पार्टनर(hindi).pdf/६१

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शेखर ने आज बताया कि उसे एच.आय.व्ही. की बाधा हो गई है। मैं बेचैन हो उठा। शेखर के बारे में मालूम होने पर शुरू में उसके पास बैठने के लिस भी शिडाक होती थी। शेखर ने एचआयव्ही/एड्स के संबंध मे मेरा सेन्सीटायझेशन किया। तब मेरे ध्यान में आ गया कि हम सिर्फ अपने बारे में ही संवेदनशील रहते है। दूसरों का विचार नहीं करते, पूरे रुप से इनसेन्सिटिव्ह होते है। इसके बाद शेखर मेरा अच्छा दोस्त हो गया। आज पहली बार गे सपोर्ट मिटिंग में गया था। थोडा टेन्शन था। मैं थोड़ा-सा सहमा हुआ था। वही डर, कोई पहचानेगा तो नहीं? लेकिन भगवान की कृपा, ऐसा कुछ नहीं हुआ। समलिंगी लोगों को (जो आऊट है उन्हें) नौकरी में क्या दिक्कते आती है, इस विषय को लेकर चर्चा थी। राजेश ने मिटींग कंडक्ट की। नौ लोग थे। ऐसी सेफ स्पेसेस और मिटींग्ज को उतना रिस्पॉन्स नहीं मिलता जितना मिलना चाहिए। फिल्म देखने अस्सी लोग और यहाँ सिर्फ नौ। दरअसल ऐसी स्पेस में ही हम पहली बार कंफर्टेबल बनते है। खुले मनसे बात कर सकते हैं। भावना व्यक्त कर सकते हैं। यहाँ परेशान करनेवाला कोई नहीं होता। विभिन्न प्रकार के अनुभव सुनने को मिले। सौरभ के बॉस को किसी और से पता चला कि वह 'गे' है। उसकी नौकरी चली गई। सुजाता ने कंपनी में खुद बता दिया कि वह 'गे' है। एक सॉफ्टवेअर कंपनी में वह प्रोग्रामर है। चुंकि उसकी कंपनी उदारवादी है, इसलिए उसकी नौकरी पर आँच नही आई। लेकिन उसके कलिग्ज उसे हमेशा झिड़कते रहते हैं, उपहास की नजर से देखते है। मजाक उड़ाते है। कहते वक्त सुजाता की आँखे भर आई थी। एक पुरुष वेश्या है। युवराज नाम है उसका। उसने उसके अनुभव बताएँ। मुझे उससे बहुत डर लगता है। वह बहुत ही जनाना ढंग का है। साडी पहन के आया था। मेकअप भी किया था। मुझे तो वह औरत ही लगा। बाद में समझा कि वो लड़का है। मैं बेचैन हो गया। जितना हो सके उससे दूर जा बैठा। अब ट्रस्ट में मैं व्हॉलेंटियर बन गया हूँ। राजेश की मदद करता हूँ। कुर्सियाँ जुटाना, चाय पानी की व्यवस्था, मिटींग का अजेंडा छापना - जो कुछ छोटा-बड़ा