पृष्ठ:पार्टनर(hindi).pdf/७३

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सकता है, दो पुरुषों की, या दो महिलाओं की समानता पर आधारित रिश्ता, हमारे और साथ में बिजलिंगी समाज के लिए इक्चलिटी का रोल मॉडेल बन जास। सिर्फ रिटरीओटिपिकल टोल प्ले और सेक्स इन दो चीजों पर ही जो जोर दिया जाता है वह कम हो जाएगा। उसकी जगह रिश्ता, मानवी भावनाओं की अहमियत सामने आएंगी। अर्थात रिश्ता हो या भावना, उन्हें जमाने के लिए कानूनन, सांस्कृतिक सहारे की जरुचत होती है। उसके बगैर नहीं हो सकेगा। समलिंगी रिश्तों के लिए यह सहारा ही कहाँ मौजद है? इस मुझे अगर बहुत पहले मिल जाता, तो प्रेम और सेक्स का मुंहताज बना दर दर क्यों भटकता? इरुके बहन की शादी तय हुई है। माँ धीरे-धीरे मुझे स्वीकारने लगी है। अखबार में कहीं कुछ इस विषय पर देखा, तो मुझे बताती है। आज उसने कहा, 'हमारा समाज ही बेकार है- हम मजबूर है, क्या कर सकते है?' मेरा दिल भर आया। इतने सारे क्लेश होने के बादभी, मुझे समझ लेना का प्रयास कर रही है। मुझे बहुत दिल से चाहती है। एक बेटे को माँ से और किस बात की अपेक्षा होती है? लगा, उसे गले लगा लूँ। लेकिन झिझक गया। शायद ऐसे करने पर उसे संकोच हो जाता। गराज के लिए अच्छी जगह मिलने में बहुत देर लगी। आखिर मिल गई। अब चिंता है लोन की। लोन मिलने में दिक्कतें आ रही हैं। बैंक अफसर पैसे माँग रहा है। जो कुछ 'डाऊटपेमेंन्ट' करना होगा वह भार इरु उठानेवाला है। माँ का कहना है- लोन न लूँ और तो और, इरु से कुछ भी मत लूँ! मैंने लोन नहीं लिया। माँ ने बैंक के डिपॉझिटस् और उसका एक गहना बेच दिया। डाऊनपेमेंट आखिर इरुसे ही लेना पड़ा। उसपर माँ नाराज है। आज रजिस्ट्रेशन हो गया। इरु और माँ आज पहली बार आमने सामने आए। उनकी पहचान हो गई। पिताजी आए नहीं। रजिस्ट्रेशन के काम के बाद खाना खाने के लिए होटल में जाना था लेकिन इरु को देखकर माँ बेचैन हो गई। इस समझ गया। कुछ बहाना बना के निकल गया। माँ पर मुझे इतना गुस्सा आया। इन दोनों के बीच } ६४...