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पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/१०३

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विववाश्रम झोगा । देखो, तुम्हारी यह साई कितनी पुरानो और गन्दी हो गई है । ये हाए ले जाओ, नई ले लेना ।" इतना कहकर डॉक्टर जी ने पाँच रुपए का एक नोट उसके हाथ पर घर दिया। बालिका नोट देखकर बवग इटी, ले या चले न समझ सकी। उसके मन में नई लाड़ी पहनने को लालसा जाग्रत हो उठी। वह उत्सुक होकर डाक्टर जी के सफा- घट मुख का देखने लगो। डॉक्टर जी ने कहा--नोट को सम्हाल कर रख लो। जेब तो है न -चोली में रख लो, गिर न जाय। ठहरा, रख देता हूँ। बालिका न रोष, न निषेध कर सकी। डाक्टर जी ने उसकी चोली में हाथ घुसेड़ दिया। एक पैशाचिक आवेश से डाक्टर जी का लाल चेहरा और सी लाल हो उठा। बालिका घबराकर उठ बैठी, और उसने धड़ाम से किवाड़ खोल दिए । डाक्टर जी हड़बड़ा कर छठ बैठे। उन्होंने धार से कहा-अच्छा, बाकी बात फिर होंगी, परसों इसी समय आना। पर देखना, रुपयों की बात किसी से न कहना-समझी ? "पर जन स्वचे कलंगी, तब तो भेद खुलेगा ही ?" "कह देना किसी सहल ने दिया था, या पड़ा पा गई थी। "र, आप बेफिक्र रह, मैं सब ठीक कर तूंगी।" अब डाक्टर जी दुलार से बालिका के गालपर चुटकी लेकर बाहर चले आए। हंसकर बुढ़िया से कहा-'लड़की बड़ी सीधी है, दो-चार बार आने से समन जायगी। न होगा तो यहाँ कुछ दिन रख लिया जायगा।" बुढ़िया ने कहा- भगवान् श्रापका भला करें। आपने बड़ा