पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/१०८

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चतुरसेन की कहानियाँ "मैं अपना भला कर लूँगी, तुम अपना खर्च ले लो और मुझे जाने दो।" "खर्च कहाँ से दोगी?" "और कुछ मेरे पास नहीं,जो दो-चार गहने हैं उन्हें ले लो। "लाओ, ये तो कोष में जमा होंगे। युवती ने गहने उतार दिए। उन्हें गजपति ने हाथ में लेकर कहा-'हमने तार देकर तीन आदमी पञ्जाब से तुम्हारे लिए बुलाए हैं। वे आज रात को आ जायेंगे। एक तो आ भी गया है, अब यह तुम्हारी पसन्द पर है, जिसे चाहो पसन्द करो। इतना कह और बिना उत्तर की प्रतीक्षा किए, उसने उसे पीछे को ढकेल दिया। जब तक यह सम्हले, गजपति ने बाहर निकल कर साँकल चढ़ा दी और कहा-'भागने की चेष्टा के भय से ऐसा किया गया है, बुरा न मानना । अभी विवाह को ना-नू करती हो, जव सुन्दर जवान देखोगी तो खुश हो जाओगी। दिन भर पड़ी- पड़ी सोच लो। इतना कह कर तीनों चल दिए । युवती भौंचक सी खड़ी रह गई। फिर वह जोर-जोर से किवाड़ पर हाथ मारने और चिल्ला-चिल्ला कर रोने लगी। "देखो सावित्री, आज तुम्हारी शादी फिर निश्चय हो गई है। और इस बार भी तुम्हें वहीं चालाकी करनी होगी। तुम कुछ नई तो हो नहीं, सब बातें जानती हो।" "अब इस बार मुझे कहाँ जाना होगा ?" १२