पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/११०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

AWW चतुरसेन की कहानियाँ भी खूब मजा है। थोड़ी देर तक वह अपने भूतकाल को सोचने लगी। वह वर्तमान जीवन से उसका मुकाबला करने लगी- क्या यह अच्छी बात है ? पति के घर में कैसी सुखी थी। जरा- सी बात पर लड़कर निकल भागी, और ये दुधमुझे फाँस लाए । अब यहाँ अजीब शादियाँ होती हैं, रूपए गाँठ में करो, दुलहिन बना, व्याह करो और फिर चकमा देकर भाग आओ। फिर ब्याह कर लो! पकड़ी जानी-तो कह दो कि जुल्म करता है, मारता है। जय गंगाजी की! युवी फिर जग हस दी ! मिर कुछ सोचने लगी! थोड़ी देर में जान एक महरी को पुकार कर कहा "जरा बुलबन्न को लो बुलाई। बल बन्न एक ३० वर्ष का हट्टा-का, किन्तु मैला-कुचला बादमी था। उसकी आँखे छोटी, नाक पतली और लम्बा, माथा सङ्ग और रङ्ग पीला था। उसके दाँत बड़े गन्दे थे, और मूछे बड़ी बनग्नीब थीं। वह ठिगना मोटा और बेहूदा सा आदमो था। उसने आकर जरा हँसकर कहा-क्या हुक्म है ? "वही मामला है, बस समझ लो।" "सब समझ चुका हूँ, सुन लिया है।" बताओ फिर क्या करना होगा ?" "काना-धरना क्या है, जरा शर्मीली नवेली बनकर चली जाओ । दस-पाँच दिन खूब शर्मीली बनी रहना, बूढ़े को अच्छी तरह सुलगाना । पाँच-सात गहने वसूल करना, उसे रिझाना। मौका पाकर चिट्ठी में भागने की तारीख लिखना-समय भी लिख देना । समय वही सन्ध्या का ठीक है, मैं गली में मिल जाऊँगा, सवारी तैयार रहेगी। हमलोग अगले स्टेशन से सवार ।