पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/१११

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4 विधवाश्रम होंगे। पाँच-सात दिन पहले की भाँति सैर करेंगे रि यहाँ आ जाएँगे।" बलवन्त ने युवती को चूरकर हँस दिया है बुददी ने नटखटपने से हँस कर कहा-"E, इस बार तुम्हारे चको में मैं नहीं आने की, सैर-सपाटा नहीं होगा, मैं सीधी वहीं आऊँगो" "कैसी बेवकूफ हो, जब वह कहाँ ढूँढ़ने श्रादेगा, तब क्या होगा ? "मैं क्या जानूँ !" "वस; तो जब ऐसी अनजान हो तो जैसा हमारा बन्दोबस्त है, वही करा । तुम्हारे गायब होते ही वह सीधा वहीं दौड़ेगा । और आश्रम का कोना-कोना छानकर चला जायगा। बस आश्रम की जिम्मेदारी खत्तम ! फिर दूसरा बल्लू देखो ?" "और इतने दिन तुम अपनी मनमानी करोगे।" "देखें, प्यारी, मेरे विषय में ऐसी बात मत कहो। दो-दो आर तुम्हारे लिए मैं जान हथेली पर घर चुका हूँ। तुम्हें मैं दल से चाहता हूँ। अन्त में तो और दो-चार खेल खेल कर तुम मेरी होगी १५ "चलो हटो, मैं तुम्हारा मतलब खूब जान्दवो हूँ। तुमने जानकी से भी ऐसे ही कौल-करार किए थे। आखिर जब माड़ा पड़ा तो साफ बच गए, बेचारी को जेल जाना पड़ा। "नहीं प्यारी, ऐसा न कहो-कसूर उसी का था।" "खैर, जाने दो। तो अब क्या बात परको रही । "वही, जो मैं कह चुका हूँ । "मैं तुम्हें खत लिखुगी ?" "हाँ, उसमें इशारा भर कर देना कि कौन चारीख