पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/११३

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विधवाश्रम "के दो सौ किस मद में बावगे?:- महाशमी. अाश्रम का म्बर चा काह से चलता है, यह न च । नङ्गकियों को महीनों रख कर उन म कितना बर्थ किया जाता है। दिना. परवरिश, उन कुन्तकारीको दर बार के इन विधा का शुद्ध करना, उन्हें आदर्श गृहिली नाना-यह ना मारी बात बाई ही है। ये दो सौ रुपए आश्रम का दान नपि, इनकी आरको रसीद मिलेगी। स्वातिरजमा " "मन में आश्रम को तो पचरू स्याप प्रश्नही दे चुका है। "बर तो दाखिला फतवा महाराय नी । यह ना आश्रम का नियम है कि जब कई विवाहाथों आवे नो फीस दाखन्ना लेकर दव विवाह की चर्चा चलाई जाय ।" "मगर महाशय जी, ये दो सौ रुपए तो भार मालूम "यह आप क्या कहते हैं ? संस्था को देने में आप इधर-उधर करने हैं। सोचिए, यदि संस्था न होती तो कितनी देवियाँ धर्म-भ्रष्ट होती, और आपकी सेवाएं भी कैसे हो सकती थी। अधिष्ठाता जी, उर्फ पिता जी और वर में उपरोक्त घिन- फिस बड़ी देर तक होती रही और तब उन्होंने दो सौ के नोट गिन दिए । इसके बाद ही, स्वस्ति-वाचन, शान्ति-प्रकरण का जोर-शोर से पाठ हुआ ! अग्नि प्रज्वलित हुई, दुलहिन आई और पवित्र बैदिक रीति स विवाह-कार्य सम्पन्न हुआ। विवाह होने पर अधिष्ठाताजी बोले- पन्द्रह रुपए और दीजिए !. "यह किस लिए 2