पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/११४

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चतुरसेन की कहानियाँ पाँच पण्डित जी की दिवाइ-दक्षिणा पाँच की साड़ी अधि ठात्री देवी के लिए और पाँच की मिठाई लब लड़कियों के वास्ते " कुछ अनमने होकर पन्द्रह भी दे दिए। इसके बाद उन्होंने धड़ी देख कर कहा- अब आप बिदा की तैयारी करा दीजि- एगा। गाड़ी जाने में अधिक देर नहीं है। "पर अभी तो प्रीति-मोज होगा" "इस प्रीति-मोज रहने दीजिए।" "ऐसी जल्दी नहीं। सब तैयार है। भला बिना भोजन विवाह कैसा प्रीति-भोज का आयोजन हुआ। पुरोहित, अधिष्ठाता और अल्लम-गल्लम, जो वहाँ उपस्थित थे, सभी बैठे। भोज समाप्त होते ही हलवाई ने बिन अधिष्ठाता जी को दे दिया। उन्होंने एक नजर डाल कर वर महाशय की तरफ सङ्केत करके कहा-'आपको दो।' घर महाशय ने घबरा कर कहा-'अब यह क्या है ? "अभी प्रीति-भोज हुआ न, उसी का बिल है ।" "यह भी मुझे चुकाना पड़ेगा ?" “वाह महाशय जी, यह खूब कही, विवाह आपका होगा तो क्या विल और कोई चुकाएगा १. "इसका पेमेण्ट तो आश्रम को करना चाहिए " "वाह, आश्रम तो आप ही की संस्था है, वह यह भार कैसे उठा सकती है। सोचिए तो। वर महाशय ने जरा गुलगुले होकर बिल चुका दिया और