पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/११६

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चतुरसेन की कहानियाँ "वह वहाँ रहना और कुकर्म कराना नहीं चाहती, उसको म उसे मजयर कर रही है, पर वह पसन्द नहीं करती। "वह क्या चाहती है ?" "किसी भले प्रादमी से व्याह करना चाहती है।" "वह भले आदमी शायद आप हैं ?" "जी नहीं, मैं तो ऐसा कर ही नहीं सकता। आ जानते हैं, जात बिरादरी का मामला है !" "तब फिर अपको उसको इतनी चिन्ता क्यों है ? जाखों वेश्यावों की लड़कियाँ यही करती हैं।" "मैं सिर्फ इसका बद्धार चाहता है, और आपकी सेवा से भी थाहर नहीं।" "आप किस तरह काम करना चाहते हैं- खुलासा कहिए।" "मुनिए, मैं किसी तरह उसे वहाँ से निकाल लाऊँगा, बाजार में सौदा खरीदने के बहाने । विश्वास करती है, भेज देवि ! फिर मैं उसे डिप्टी कमिश्नर के पास भेज दूंगा। वहां वह कह देगी की मेरी माँ मुझसे बुरा काम कराना चाहती है-उससे मुझे बचाया जाय। जब उससे पूछा जायगा कि तू कहां जाना चाहती है, वब वह आश्रम में आने को कह देगी। उसे आप यहाँ रख लें, और हम जिस आदमी से कहें उसकी शादी उसी रात को कर दें। ये दो सौ रुपए आपकी नज़र हैं।" और वह आदमी कौन है ?" "मेरा नौकर है।" १०० उसकी माँ मुझ पर