पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/११८

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3 चतुरसेन की कहानियाँ जनके आते ही सभा में तालियों की गड़गड़ाहट से समा- यवन गूंज उठा। इसके बाद ही लाला जगन्नाथ जी ने चिल्लाकर का कहा- मैं प्रस्ताव करता हूँ कि आज की सभा में हमारे परम श्रद्धास्पद, आदरणीय श्री डॉक्टर साहब सभापति का स्थान ग्रहण करें।" गजपति ने प्रस्ताव का अनुमोदन किया। अच डाक्टर साहब भाँति-भाँति के मुंह बनाए, उसी प्रकार टेढ़ी गर्दन किए, विविध रीति से शिष्टाचार प्रदर्शन करते अति दोन भाव से सभापति के आसन पर जा बैठे। मानों उन्हें काँसी लगाई जा रही थी। उनके आसीन होते ही फिर तालियाँ बजी। अब एक महाशय जी बड़ा सा साझा सिर पर लपेटे उठ खड़े हुए और बड़े गर्वीले ढङ्ग से खड़े होकर एक भजन गाना प्रारम्भ किया। भजन क्या था. गद्य-पद्य का सम्मिश्रण था।न सुर, न ताल ! वे खूब चीख-चीख कर कर गाने लगे और साथ हो हारमोनियम बजाने लगे। हारमोनियम भी खूब चीख रहा था। अन्ततः लोगों के कानों के पर्दे फटने लगे और वह गायन समाप्त हुआ । इसके बाद डाक्टर साहब ने खड़े होकर वक्तृता देनी प्रारम्भ की :-- "भाइयो और देवियो ! आज आपके आश्रम का द्वितीय वार्षिक उत्सव है। इस अवसर पर इतने आदमियों को एकत्रित फूला नहीं समाता हूँ। अभी मन्त्रीजी आपको रिपोर्ट सुनाएँगे। उससे आपको मालूम होगा कि अधोगति के मार्ग में पतित भ्रष्टा स्त्रियों को पतन के महापङ्क से उद्धार करने में श्राश्रम ने कितनी समाज की सेवा की है । ईश्वर की कृपा और आपलोगों की सहानुभूति से संस्था खूब सफल हो रही है (हर्षध्वनि )। परन्तु अभी लाखों-करोड़ों अनाथ विधवाएँ हैं, जिनका उद्धार १०२