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पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/१२०

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'मे & चतुरसेन की कहानियाँ 'रिपोर्ट खतम होते ही फिर तालियों की ध्वनि से सभाभवन गूंज उठ'। इस बीच में एक आदमी ने खड़े होकर कहा- "मुकदमे में ८००) की बड़ी रकम स्वर्च होने का कारण क्या है ? ' सभापनि ने कहा-"कृपा कर बैठ जाइए, सभाके काम में गड़बड़ी न कीजिन्न ।" पर उसने एक न सुनी । कड़क कर कहा- "महाशय, मैंने गत वर्ष ५००) दान दिया था, और बीच-बीच में भी मैं संस्था को सहायना देता रहा हूँ। सो क्या मुकदमेबाजों में खर्च करने के लिए ? में यह जानना चाहता हूँ कि जनता के धन का दुरुपयोग तो नहीं किया जा रहा हैं।" मन्त्रीजी ने कहा- हमारे पूज्य प्रधान जी-डॉक्टर साहब पर एक मामूली औरत के भगाने का मुकदमा खड़ा किया गया था । इसके सिवा हमारे विश्वासी कर्मचारी गजपति के विरुद्ध भी दो ऐसे ही झूठे मुकदमे खड़े कर दिए गए थे। यह बात सभी जानते हैं कि उक्त दोनों सज्जन संस्था के कितने सहायक हैं। इसलिए विवश हो, हमें पैरवी करनी पड़ी और यह रुपया खर्च करना पड़ा।" इतने में एक दूसरे अादमीने खड़े होकर कहा-"और वेतन खाते जो आपने तीन हजार से अधिक रकम डाली है, इसका व्यौरा क्या है ? जितने उच्च अधिकारी हैं, वे तो सभी अवैतनिक हैं, फिर इतनी रकम क्या की जाती है ?' यह सुनते ही सभापति ने खड़े होकर कहा-"महाशय, यह तो सभा के काम में पूरा विघ्न हो रहा है । कृपा कर-आपा बैठ जाइछ" चारों तरफ शोर मच गया- "बैठा दो, निकाल दो, बुक