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पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/१२१

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विधवाश्रम कर दो।" उक्त महाशय गुस्से से आग-बबूला होकर डरकर बाहर चले गए। सेक्रेटरी नहाशय फिर रिपोर्ट रहने लगे। इसपर एक और आदमो उठकर कुछ कहने लगा। सभापनि ने कड़क कर कहा-"महाशय ! इस मानि बारम्बार बेटे ढङ्ग से सभा के काम में विघ्न करना अनु- चित है। मै अम्बित भाइयों से पूछता हूँ-या आप इस बात को पसन्द करते हैं ? चारों तरह नहीं नहीं का शोर मच गया और बह आदमी भी उठ गया। इसके बाद आश्रम के कार्यों के कुछ उदाहरण सुनाए गए ! रजवनी एक तेलिन थी। उसका सन २२ वर्ष को थो। उसका पति उसे अच्छी तरह नहीं रखता था। उसे आश्रम में आश्रय दिया गया, और सरकार से लिखा-यहो करके पति से उसे बेदखल कर दिया गया। फिर उसका विवाह एक अच्छे युवक से कर दिया गया। उसने २००) आश्रम को दिए एक मुसलमान-स्त्री अजीमन स्टेशन पर कहीं जा रही थीं। उसकी गोद में एक बालक भी था। उसे हमारे उत्साही कार्यकर्ता गजपति जी आश्रम में ले आए, और सममा- बुझा कर, उसे शुद्ध कर उसका विवाह एक युवक से कर दिया। उसके पति ने मुकदमा चलाया; पर जीत हमारी P गुलाबो वैश्य-कन्या थी। उसका पति कमाऊ न था। इसे खाने-पीने का कष्ट था। उसने हमारे परम श्रद्धास डॉक्टर साहब को पत्र लिखा कि मुझे कहीं ठिकाय करक. १०२