पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/१७

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पीर नाबालिग मैं समझ गया कि कोई दिलचस फिगर है। मैंने भो वैती ही गम्भीरता से कहा-तो मै सब कुछ कर गुजरने पर आमदा हूँ, फर्माइए। पीर नाबालिग ने धीरे से कहा-बनारस में जयप्रकाश नारायण श्राए हुए हैं, आपने सुना होगा ? "कल रात अखबार में पड़ा था।" "बनारस में उन्हें एक लास्त्र की थैली भेंट की जा रही है, यह भी आपको मालूम है ! "हो सकता है।" “यह तो एक अन्धेर है।" कुछ नहीं समझा कि मेरे नये दोस्त क्या कहना चाहते हैं। मैंने अकचका कर कहा-अन्धेर ? सब दोस्त एकबारगी ही बरस पड़े। बोले-अन्धेर नहीं तो क्या? सोलह आना अन्धेर ! फिर हम लोगों के रहते ? मुझे हमी आ रही थी, परन्तु मैंने उसे रोक कर अत्यन्त गम्भीर स्वर में कहा-तव तो अन्धेर को रोकना होगा। मगर मामला क्या है वह भी तो कुछ सुन्? पीर नाबालिग ने हाथ की बीड़ा फेंक दो, और पारा तेज़ स्वर में कहा---सुनना चाहते हैं तो सुनिए ! भला बनाइए तो, जय प्रकाश बाबू को किस वहादुरी के सिलसिले में इतना रुपया मिल रहा है। मैंन धीरे से कहा--उनकी बहादुरी और देशभक्ति तो भारत का बच्चा-बच्चा जानता है ! उन्होंने कितना त्याग किया, कष्ट सहे और देश की आजादी के लिए कितना भगीरथ प्रयत्न कर रहे हैं!