पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/१८

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चतुरसेन की कहानियाँ "तब आपको असल बात का पता ही नहीं है।" मैंने बिना हुज्जत यह बात स्वीकार कर ली। कहा--आफ ठीक कहते हैं, असल बात का मुझे सचमुच कुछ पता नहीं है! कुछ बताइए न भेद की बात । दोस्तों ने भो ललकारा--बस भई, अब तुम सब कुछ कह. डाला, घोड़े की लात की बात भी न छिपायो। मैंने कहा-घोड़े की लात की क्या बात है ? पीर नाबालिग एक मिनिट खामोश रहे, फिर कहा-देखिए, ये लीडर लोग सब सिर्फ जवांदराजी करते है ! काम कोई और ही करते हैं। बयालिस के अगस्त आन्दोलन ही को ले लीजिए। क्या आप जानते है कि कचहरी से यूनिवर्सिटी तक के तार और खम्भे किसने तोड़े थे? कचहरी पर कलक्टर की नाक पर पैर रन्च कर तिरंगा झण्डा किसने फहराया था ? मैंने नम्रता से कह --नहीं, ये सव भारी-भारी बातें मुझे नहीं मालूम हैं। आप उस वीर पुरुष का नाम वताइए तो। पीर नाबालिग क्षण भर चुपचाप सिर नीचा किए बैठे रहे। फिर एक दोस्त की तरफ मुँह करके बोले–अब हम क्या कहें, तुम बता दो न वीरबल, सब कुछ तो तुमने देखा था, अब कहते क्यों नहीं? बीरबल ने बाअदब कहा-आप ही कहिए, आपके मुँह से वे सब कारनामे आज हम गंगा की पवित्र गोद में बैठ कर सुनने का सौभाग्य प्राप्त करना चाहते हैं। "तो सुनिए फिर,वह सब आपके इस गुलाम की कारवाई थी! हमारे पास एक ही रस्सी थी; उसीसे हमने और मोती ने मिल कर एक काण्ड रच डाला। रस्सी हम तार पर फेंकते और. ६