अब्बाजान [ इस कहानी में कलाकार ने एक पिता के हृदय को भूतं किया है। । और इस काम मैं उसे सफलता मिली है। पिता के हृदय की शासक्ति, द्वन्द और दुर्बलताओं का व्यक्तीकरण अद्वितीय है । कहानी उत्कृष्ट आत्मवर्णन पद्धति पर है।] + छुट्टी का दिन था। तीसरे पहर चाय पी कर गप्पे हाँकने को मास्टर जी के पास जा बैठा। मास्टर जी बरामदे में बैठे मजे में गुड़गुड़ी पी रहे थे। मुश्की तम्बाकू की खुशबू चारों ओर फैल रही थी। मुझे देखा तो खुश हो गए । उनका लड़का मैट्रिक में पास हुआ था। उसी दिन नतीजा निकला था। मास्टर जी ने छूटते ही उसकी चर्चा शुरू कर दी। और आगे उसको तालीम कैसे चलाई जाय, इस पर मेरी सलाह माँगने के बहाने अपने दिल के तमाम मंसूबे बयान कर डाले। मास्टर जी की इस खुशी में मैंने पूरा योग दिया और यह स्वीकार कर लिया कि उनका लड़का बड़ा योग्य है, प्रतिभाशाली है। और उनकी तमाम योजनाओं को बिना मीन मेष के पास कर दिया। "लीजिए श्रा गया चण्डूल !"-एकाएक अमजद को सामने देखकर मास्टर जी की भौंहों में बल पड़ गए। धीरे से कहा- "अब घण्टों तक मगज चाटेगा!" १३
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