पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/३१

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अवाजान मास्टर साहब ने उसकी ओर देखते हुए कहा-~गलती और बेईमानी कैसी भाई 15 7 “हुजूर सब जगह चोर बाजार का जोर है। पैसे की मार से बड़े-बड़े नालायक पाल हो जाते हैं। सरकार, गरीब की सब जगह मौत है । अहमद कहता था-उसने पर्चे अच्छे किए थे। क्या उनकी फिर से जाँच नहीं हो सकती ? मैं शोस दाखिल कर सकता हूं। मैं रियायत नहीं चाहता हूँ हुजूर ! मास्टर जी ने मेरी तरफ क्षण भर देखकर अपनी मुस्कुराहट को छिपाया और फिर गम्भीर बनकर कहा- यह तो बहुत मुश्किल है भाई, अब तो सन्न ही करना होगा!" "तो मैं सत्र ही करूंगा हुजूर ! मैंने तमाम उम्र सब ही क्रिया है। जब अहमद की माँ मग, नव मैंने सत्र किया। बहुतों ने कहा- निकाह कर लो। एक से एक बढ़कर पैगाम आए। मगर मैंने सोचा-जो मेरी इस कदर दिलजोई करती थी, वह अस्मतवाली बीबी ही जब न रहो तो निकाह करके क्या करू गा! खुदा उसे जन्नत दे ! उसने मुझे पाँच बेटे दिए। रहीम को मेरी गोद में देकर वह चली गई तो मैंने उस पाक परवरदिगार का शुक्रिया अदा किया, और कहा-ऐ खुदा, तेरी रहमत बड़ो है। बीबी चली गई तो माँ और बाप दोनों ही बनकर बच्चों को पालूंगा। सा हुजूर, मैंने इस तरह छोटे-छोटे यतीम बच्चों का पाला-जैसे चिड़ियाँ चुनगा दे दे कर बच्चों की परवरिश करती है। मैंने कभी उन्हें यह महसूस होने न दिया कि वे यताम हैं और उनकी माँ मर गई है !" बुड़े अमजद के माटे-माटे होड काँपने लगे और उसको चुन्धी आँखें गीलो हो गई। पर वह कहता हो गया। उसने कहा- हुजूर, जब मेरी