मनुष्य का मोल पौकर' शब्द के अन्तर्गत जिस उग्र साहस और तेजस्विता की प्रतिशत भूमि है, वह नैसर्गिक रूप में बहुत कम पुरुषों में मिलता है। ईजनमें वह होता है-उनके सत्कर्म और दुष्कर्म, एवं दुस्साहस अबाध्य प्राति से सिद्धि के ध्येय पर चलते रहते हैं। वह पुरुष-सिद्धि' का श्रादूत होता है । 'करणीय' और 'अकरणीय'के फेग्में नहीं पड़ता। मे पुरुष में अनासनि, ऐसी होती है, कि उसका प्रत्येक भला बुरा कार्य श्लाघनीय बन जाता है। ऐसे ही एक पौरुषतत्वयुक्त पुरुष का रेखाचित्र इस कहानी में कलाकार ने चित्रित किया है।" जेलर ने उसे आफिस में बुलाकर कहा-"तुम छूट गए।" इसके साथ ही मेट ने उसके पुराने कपड़े और साढ़े सात रुपए सामने रख दिए। सात साल तक जेल को दीवारों के भीतर रहने के बाद आज जब उसे यह शुभ-सम्बाद मिला तो उसने न तो नियमानु- सार जेलर को सलाम किया, न कोई खास खुशी ही प्रकट की। उसने अपने सात साल पूर्व की सहेज कर रखी हुई सलवार और कमीज़ को गहरी आँखों से देखा, फिर उसकी दृष्टि मेज पर पड़े हुए साढ़े सात रुपयों पर अटक गई। न जाने क्या सोच कर
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