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पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/३७

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मप्नुय का मोल उसके होठों पर मुस्कुराहट आई। उसने चुपचाप जेल के रूपड़े सतारे, अपने कपड़े पहने और उन रूपों को लापरवाही से कमीज़ की जेब में डाला। फिर, तपाक से अपना हाथ उसन जेलर को और बढ़ा दिया। जेलर हिन्दुस्तानी था! मलाम के स्थान पर कैदी का हाथ आगे बढ़ा देख वह क्षण भर के लिए कुरिट त हुआ और फिर हॅल कर उसने कैदी का हाथ प्रेम से थाम लिया। बूढ जेलर ने हॅसते हुए कहा-"देखो सरदार, तुम एक साहसी आदमी हो। तीन साल से तुम मेरे साथ हो-इस बीच कई संघर्ष मेरे तुम्हारे बोच हुए, जुम्हारा पिछला रिकार्ड भी अच्छा नहीं था, पर मैं तुम्हारे गुण भी जान गया हूँ। तुमने दब कर रहना सीखा ही नहीं। तुम यदि इसी गुण को ठीक-ठीक काम में लाओ तो अपने जीवन को अभी भी सुधार लोगे । और देखो-तुम अब अपना पिछला पेशा मत करना।" "अर्थात् डाकेजनी ?" "डाकेजनी और खून भी।" "खून, तो मेरा पेशा नहीं, वह तो कमी २ लाचारी की हालत मे... "नहीं, नहीं, मेरे दोस्त, किसी भी हालत में नहीं। वादा करो, तुम एक भले आदमी की तरह अपना जीवन बिताओगे।" कैदी ने हँस कर बूढ़े जेलर से फिर हाथ मिलाया और कहा-"ऐसा ही मैं करूंगा जेलर साहब।" और फिर उसने दरवाजे की ओर कदम बढ़ाया। बाहर सुनहरी धूप फैल रही थी, सड़क पर दो-चार भद्रजन झवाखोरी को निकले थे, उसमें एकाध नौजवान जोड़ियाँ भी थीं। २१