पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/३९

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मनुष्य का मोल चार-टोन्ट. पूरी-इलवा और फल बिक रहे थे। परन्तु उसकी जेब में अब एक भी पैसा न था । उसने हस कर अपनः भूख को बहलाया और प्लेटफार्म के एक किनार, गाड़ी की प्रनीक्षा में इनले लगा। ३ बड् दिल्ली पहुँचा तो दिन ढल्ने लगा था, लेकिन धूप अब झी बहुन तेज थी, और भूख उससे भी तेज : दिल्ली में उसका कोई दोस्त भी न था। वह देशन में निकल कर कुछ सोचता हुआ एक ओर चल दिया। सड़क के दोनों ओर पाने-पीने को दूकान थी, कुछ होटल भी थे। उसने सोचा-क्या मुझ पेट के लिए आज ही फिर वहीं काम करना पड़ेगा, जिसे न करने का वचन मैं बुड्ढे जेलर को दे आया हूँ । सामने एक शानदार होटल देख वह साहपूर्वक उसमें गया और एक खाली मेज पर शान से बैठ गया। वॉय भायर और उसने खाना लाने का संकेत किया । खाना खा चुकने पर उसने बिल मांगा; चिल आने पर उसने दवात-कलम मँगाई और बिल की पीठ पर लिख दिया-इसका रुपया फिर कभी दिया जायगा ! वॉय अकचका कर उसके मुंह की ओर देखने लगा। उसे इस प्रकार घूरते देख उसने उसे डाँट कर कहा--- "जाओ और मैंनजर को यह काराज दे दो।" काराज पढ़ कर मैंनेजर उसकी मेज पर माया । उसने देखा, एक तगडा समावदार आदमी बेपरवाही से अकड़ा हुआ कुर्सी पर बैठा है । उसने कहा-"चिल का पेमेंट क्यों नहीं करते ?" "क्या तुम्हीं मैंनेजर हो ? "जी हाँ मैनेजर ने कुढ़ कर कहा ।