पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/४०

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.. W चतुरसेन की कहानियाँ "तो पेट की बावन विल की पीठ पर लिख दिया गया है कि पेमेंट फिर कभी हो जायगा !" "लेकिन क्यों : "क्योंकि प्रभी रुपया नहीं है।" "तन गना क्यों खाचा? "तुम्हें सोचना चाहिए था कि यहाँ खाना खाने पर रुपया देना होता है।" "वह हमने सोचा था, परन्तु याद रखो, यहाँ 'तुम' कोई नहीं है. आप कहो "गोया आप एक शरीफ आदमी हैं।" "शरीफ न होना तो मैं तुम्हारी तिजोरी तोड़ कर उसकी मत्र जमापूंजी मालमत्ता निकाल ले जाता, फिर महीनों तक तुम्हें थोड़ा-थोड़ा देता और सलामें लेता।" सवाल-जवाब दिलचस्प थे, सुनने वालों को दिलचस्पी बढ़ रही थी। एक ने पूछा-"आप कौन हैं ?" "मैं एक खूनी डाकू हूँ। यह शब्द सुनते ही वहाँ बैठे प्रत्येक व्यक्ति ने चौंक कर उसकी ओर देवा, कुछ लोग उसे घेर कर खड़े हो गए। मैंनेजर के माथे से पीने की बूंदें चूने लगी। एक वृद्ध भद्रजन ने आगे बढ़कर पूछा--"आप कहाँ से श्रा रहे हैं? "शायद लम्बी सज्जा काटी है "जी हाँ, पूरे सातसाल'