चतुरसेन की कहानियाँ लारी से, कहीं पैदल, बीहड़ और दुर्गम दलदल जङ्गलों में महीनों जीवन-मरण का संग्राम करते हुए, अन्तत भारतभूमि पर आ पहुँचे। पन्नी, पुत्र, पुत्र-वधु, परिजन कहाँ गए, मरे या निष्य, इसका कुछ पता न था। साथ में था एक प्राण और प्राणाधिक नोटों और हुडियों का पुलिन्दा । दिल्ली के इम्पीरियल बैंक के सामने जब एक घिनौने दोन- हान चोथवेधारी अर्धकालने करोड़ों को सरकारी हुण्डियाँ भार लाग्यों के वर्मा नोट भुनाने को पेश किए, तो बैंक में मेला लग गया ! छोटे से बड़े नक प्रत्येक ने हजार-हजार सवाल किए। अन्ततः सेठ बदामीलाल चार और उठाईगीर नहीं, यह वैक ने मान लिया और हुरियाँ सरकार दी! वर्मा नोट भी भारतीय करन्सी में बदल दिए। एक ही मास में संठ छहामीलाल नयी दिल्ली की एक प्राली- शान कोठी में अपने नवीन मुनीम गुमाश्तों से घिरे लाग्यो के व्यापार विनिमय की योजना बनाने लो. विश्व की अर्थनीति का उन्हें व्यवहारिक ज्ञान था, और राजनीतिक विप्लव में अर्थनीति कैसे कैसे खेल खलती है, यह भी वह जानते थे। उन्होंने अपने पूर्व अनुभव के आधार पर, खासकर इस कारण कि उनके दो जहाज अभी भी कलकत्ता की खाड़ी में सुरक्षित ये, सुदूरपूर्व में फैली सम्पूर्ण मित्र सेना के भोजन-वस्त्र-वितरण की जिम्मेदारी ले ली। इसी उपलक्ष्य में एक शानदार भोज वायसराय को दिया और उसी समय तीस लाख की एक थैली
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