चतुरसेन की कहानियाँ ने हाथ बढ़ाते हुए सेठ जी से कहा..."अब स्टेशन पर परसों मापसे मुलाकात होगी: बीमा के कागजात अपने सॉलीसीटर को दे जाइए और एक परिचय पत्र मेरा उनके नाम लिख कर मुझे देते जाइए, आवश्यकता होने पर मैं उनसे मिल लूँगा!" इतना कह मित्रों सहित जेन्टलमैन विदा हुए। सेव जी यवराहद के मारे कमरे में टहलने लगे। तीनों मित्र एक होटल के एकान्त कमरे में बैठे थे। दास ने कहा-"क्या आज ही?" "हाँ, तुमने कहा न, कि दूकान की उघरानो का डेढ़ लाख रुपया ा गया है।" "पर वह घरानी का नहीं, आढ़तियों की रकम है।" "ओह ! इससे कोई बहस नहीं, उसका पेमेंट दूकान कर देगी। लाश्री, वे रुपये कहाँ हैं ?" दास ने नोट निकाल कर सामने रख दिए। उसमें से दस हजार के नोट मि० सिन्हा के हाथ पर रखते हुए मि. जेन्टलमैन ने कहा-"मि० सिन्हा, यह आपका वह छाटा सा नुस्खा है ।" और चालीस हजार मि० दास को देकर कहा--"यह आपका डेड़ महीने का वेतन है ?" शेष एक लाख जेब में रख कर बोले- "दुकान में माल कितना होगा ?" "अस्सी हजार का होगा हो " "जाने दो । हाँ, तो मि० सिन्हा, मतलब समझ गए न ? बिजली का करेन्ट ऑफ करके बीच में तार को काट कर नका कर दो और परस्पर मिला दो। “यह तो बहुत मामूली काम है"-सिन्हा ने कहा !