पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चतुरसेन की कहानियाँ वेशुमार धन है। परंतु उसका विषम वितरण हो रहा है। लोग बहुत ज्यादा अमीर हैं, बाकी सब बहुत गरीब हैं।" तीनों मित्र सन्नाटा खींचे बैठे थे। जेन्टलमैन बोले- समय यदि हम कोई ऐसा काम करें कि देश के दीन-दुखिर भी सला हो-गरीबों को सहारा मिले-सर्वसाधारण के धु सदुपयोग हो, तो कितना अच्छा है ?" सेठ जी जोश में आकर बोल उठे-"बहुत अच्छा, आप कोई अनाथालय या ऐसी ही संस्था खोलना चाहें तो मैं अ जितना आप चाहें धन दे सकता हूँ। विश्वास कीजिए।" मि० जेन्टलमैन ने होठ सिकोड़ कर कहा-"सेठजी, मैं बेवकूफों से कुछ दूसरे ढंग का आदमी हूँ, जो अनाथालय धर्मशालाएँ बनवाते हैं। मेरा तो प्रस्ताव ही कुछ और है। "वह क्या है?" 'हम एक बैंक, राष्ट्रीय बैंक स्थापित करेंगे।' तीनों मित्र अत्यंत गम्भीर हो गए। वे आँखें फाड़-फाड़ इस अक्ल के पुतले को देख रहे थे। मि० जेन्टलमैन ने खूब गम्भीर होकर कहा-"हमारे म वित बैङ्क का मूलधन दो करोड़ रुपया होगा। इसमें पचास हे रुपया सेठ जी का तथा दस दस लाख रुपया हम तीनों मियों का लगेगा। सेठ जी बैङ्क के मैनेजिंग डाइरेक्टर हो बाकी हिस्से हम आनन-फानन मेंबेच डालेंगे । इस बैङ्क में ज्यादा से ज्यादा सूद पर लोगों को रकमें जमा करेंगे और को राष्ट्रीय उद्योग-धन्धों में लगाएँगे । व्याज कम से लेंगे। यह देश के रुपए का देश के हित के लिए सदुपयोग के का सबसे भारी काम होगा।" ६६