पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/८७

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चतुरसेन की कहानियाँ जेन्टलमैन-नहीं, यह असम्भव है। मैनेजर-तब पेमेण्ट भी असम्भव है । क्योंकि मुझे काफी यकीन है कि अाज कम से कम दस लाख रुपया देना पड़ेगा। मेरे पाम इस वक्त कुल चालीस हजार रुपया है । मैं बहुत थोड़ा और इन्तजाम कर सकता हूँ। मि. जेन्टलमैन के माथे पर बल पड़ गए। वह अपनी कुर्सी पर से उठ खड़े हुए, उन्होंने क्रोध से हथेली पर मुट्ठी मारकर "क्या आप आज भर का काम नहीं चला सकते ?" “जी नहीं !"-मैनेजर ने कागजात मेज पर डाल दिए। "तब ठीक, आप बैंक को बन्द कर दीजिए। जेन्टलमैन तीर की तरह अपने कमरे से निकल कर मोटर में आकर बैठ गए। शहर में तुफान की तरह खबर फैल गई । बैंक का फेल होना और सेठ जी का एकाएक मर जाना, ये दोनों खबरें लोग आश्चर्य और सन्देह से सुन रहे थे । सेठ जी का मर जाना जिस तरह आश्चर्यजनक था, उसी प्रकार बैंक का फेल होना भी। जिस तरह सेठजी हट्टे-कट्टे थे, उसी तरह बैंक की हालत भी अच्छी थी। एकाएक यह क्या होगया, इसकी लोग कल्पना भी नहीं कर सके। जिनके रुपये बैंक में जमा थे, उनके ठट्ठ के ठट्ट बैंक के आगे खड़े हुए थे। पुलिस प्रबन्ध कर रही थी, लोग दरवाजों पर पत्थर चला रहे थे, और चिल्ला रहे थे । भोड़ काबू में करना कठिन हो रहा था। मि० जेन्टलमैन अपने सालीसीटर के यहाँ बैठे हुए अपने इन्सालवैसी के काराजात तैयार