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पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/८९

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चतुरसेन की कहानिया भारम्भिक नजराना है ! आगे मैं हर तरह आपको खुश करूंगा।" दोनों ने भेद भरी निगाह से एक दूसरे को देखा, हाथ मिलाए और फिर ऑल मिलाई। दोनों ने एक दूसरे को समझ लिया और अपना कर्तव्य निर्णय कर लिया। दास और मिजेन्टलमैन फिर एकत्रित थे। इस समय दोनों के चेहरों पर हवाइयाँ उड़ी हुई थीं। मि० जेन्टलमैन का मुंह गुम्से से लाल हो रहा था और मि० दास का भय से पीला । मि जेन्टलमैन ने मेज पर हाथ मारकर कहा-"देखो मि० दास! अगर तुमने इस समय बेवक्फी की तो सोवे जहन्नुम- रमीद कर दिए जाओगे । मैं एक जेन्टलमैन हूँ, अगर तुम मेरी वात को मान गए और जैसा मैं कहूँ वैसा करते गए तो इसमें कोई शक नहीं, कि अभी तुम लाखों रुपया कमाओगे। मि० दास ने कहा-"आप चाहते क्या है ?" जेन्टलमैन ने जेब से एक फेहरिस्त निकालकर कहा-कि यह शिकस्ड डिपाजिस को सूची है। कुल पचासी लाख रुपया फिक्- स्ड डियाजिट बैंक में जमा था। आप जानते हैं कि बैंक फेल हो और इस वक्त पावने-दारों को दो आना को रुपया भी नहीं मिल सकता। सेठ जी जो सब से बड़ी रकम के देनदार थे, वे वेचारे मर गए । अब तुम यह उद्योग करो कि जहाँ तक मुमकिन हो सके, तमाम फिक्स्ड डिपाजिटर अपनी अपनी रसीदें ज्यादा से ज्यादा चार आने के हिसाब से हमको वेच दें, और जब उन्हें मालूम हो जाएगा कि बैंक से) आने फी रुपया भी मिलना मुश्किल है, तो वे चार आने रुपये में अपनी रसीदें बेच देंगे। चूंकि जो कुछ मिल जाय सो बहुत है।"