पृष्ठ:पीर नाबालिग़.djvu/९१

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चतुरसेन की कहानियाँ पास पचास हजार रुपया तो है ही, लाओ यह रसीद मुझे दो, मैं तुम्हें बीस हजार रूपऐ और दिये देता हूँ। तुम अपना बचाव करो। मेरे भगवान् मालिक हैं।" यह कहकर क्होंने बीस हजार के नोट निकालकर कर मिक सिन्हा के हवाले कर दिये। और रसीद अपनी जेब में रख ली। मि० सिन्हा की श्राँन्त्रों में आँसू आ गये। उन्होंने कहा--- मि० जेन्टलमैन, आप धन्य हैं ! अगर आपकी इस वक्त यह सहायना न मिलती तो मिट चुका था।" जेन्टलमैन ने हाथ बढ़ा कर कहा-"लेकिन भाई, सही- सलामत जहाज में बैठ जाओ और अमेरिका पहुंच जाओ, तब जानूं कि मेरी मेहनत सफल हुई। हमेशा के लिए याद रखना कि मैं एक जन्टलमैन हूँ।" मि० सिन्हा आँखों में आँसू भरकर बिदा हुए और चले गए। जेन्टलमैन कुर्सी से उठे और दोनों हाथ मलते हुए कमरे में जल्दी जल्दी टहलने लगे। बड़बड़ाते हुए उन्होंने कहा कि सब काम अपने आप ठीक होते चले जा रहे हैं। ठीक दस दिन बाद मिस्टर दास और जेन्टलमैन फिर कमरे से अन्दर वैठे हुए थे। उनके सामने फिक्स्ड डिपॉजिटर्स को बहुत सी रसीदें फैली हुई थीं। इन सबकी एक सूची बता कर उन्होंने जोड़ लगाकर देखा कि कुल पैंसठ लाख रुपये की रसीदें हैं, जो उन्हें सिर्फ सात लाख रुपयों में मिल गई। उन रसीदों को समेट कर जेब में रखते हुए जेन्टलमैन ने एक ठण्डी साँस ली और कहा-"मिस्टर दास, अब मैं जो कुछ कर सकता था कर गुजरा। मेरे पास जो कुछ था वह मैंने डिपॉजिटरों को V