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पृष्ठ:पुरातत्त्व प्रसंग.djvu/१५९

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काले पानी के आदिम असभ्य


से तीर छूटता और मछली को छेद देता है। मछली के तीर लगते ही ये झट पानी में कूद पड़ते हैं और तीर सहित मछली को पकड़ लाते हैं। ये लोग बड़े ही अच्छे निशानेबाज़ हैं। शायद ही कभी किसी अन्दमनी का निशाना चूकता होगा। ये लोग तैरने में भी बड़े दक्ष होते हैं। मीलो तैरते चले जाते हैं; कभी थकते ही नहीं।

अन्दमन के मूल निवासी अधिकांश मांसाशी हैं। सुअर के मांस को तो ये रसगुल्ला ही समझते है। इन का सबसे अधिक भोज्य पदार्थ मछली है। वह इनके लिए सुप्राप्य भी है। कीड़े, मकोड़े और छिपकली आदि को भी ये खा जाते हैं। बेर तथा कुछ अन्य जगली फल और शहद भी इनका खाद्य है। खाने की चीज़ों को ये खूब उबालते हैं और गरमागरम ही उड़ा जाते हैं।

अन्दमनी लोगों के पास शस्त्रों की मद में केवल तीर-कमान और भाला ही रहता है। और शस्त्र उन्हें प्राप्य नहीं। चाकू, के बदले सीपियों और शंखों के धार- दार टुकड़े-मात्र होते हैं। उन्हीं से वे काटने और छीलने का काम लेते हैं। पहले तो वे तीरो के फल की जगह केवल एक नोकदार पैनी लकड़ी ही लगाते थे। पर अब वे लोहे के फल काम में लाने लगे हैं। वह लोहा या लोहे के फल उन्हें भारत के उन लोगों से प्राप्त होते हैं