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पुरातत्व-प्रसङ्ग


जो अन्दमन में बस गये हैं। लोगों को पहले ख़याल था कि अन्दमनी असभ्य अपने तीरों को विष में बुझाते हैं। पर यह बात अब मिथ्या सिद्ध हो चुकी है। हाँ, इनके तीरों के घाव विषाक्त ज़रूर हो जाते हैं। इसका कारण यह है कि जानवरों को मारने के बाद उनके मृत शरीर से निकाले हुए तीरों को ये लोग धोते नहीं। वही यदि मनुष्य के शरीर में प्रवेश करते हैं तो घाव को विषाक्त कर देते हैं। इसी से वह जल्दी अच्छा नहीं होता।

अन्दमनियों की कुछ रीतियाँ बढ़ी ही विचित्र हैं। बहुत दिनों के बाद जब दो मित्र आपस में मिलते हैं तब देर तक ज़ोर ज़ोर से चिल्लाते और आँसू बहाते हैं। यही उनके हर्ष-प्रकाशन की रीति है। उनको ऐसा करते यदि कोई विदेशी देखे तो उसे यही भासित हो कि इन लोगों पर कोई बहुत बड़ी विपत्ति आ पड़ी है। जब दो आदमी एक दूसरे से विदा होते हैं तब वे परस्पर हाथ फूँकते और अपनी भाषा में कहते हैं कि ईश्वर करे तुम्हे कभी सॉप न काटे। इनकी वैवाहिक पद्धति भी बड़ी ही विचित्र है। जब इन लोगों की जाति के वृद्ध पुरुषों को मालूम होजाता है कि कोई युवा और युवती विवाह करना चाहते हैं तब वे एक नई झोपड़ी बनवा कर उसमें वधू को बिठा देते हैं। फिर कुछ आदमी वर की खोज में बाहर निकलते हैं। उसके मिल जाने पर