शिलालेखों से ज्ञात होता है कि धीरे धीरे चे दूरवर्ती
कम्बोडिया तक में पहुँच गये। उस देश में एक जगह
अशोर-बट नामक है। वहाँ एक टूटा-फूटा शिलालेख
मिला है। उसमें लिखा है--
"ब्राह्मण अगस्त्य आर्ययदेश के निवासी थे। वे शैवमत के अनुयायी थे। उनमें अलौकिक शक्ति थी। उसी के प्रभाव से वे इस देश तक पहुँच सके थे। यहाँ आकर उन्होंने भद्रेश्वर नामक शिवलिंग की पूजा-अचा बहुत काल तक की। यहीं वे परमधाम को पधारे।"
कम्बोडिया में अगस्त्य ऋषि ने अनेक बड़े बड़े शिव- मन्दिरों का निर्म्माण करा कर उनमें लिङ्ग-स्थापना की। वहाँ उन्होंने एक राजवंश की भी नींव डाली। इस प्रकार उन्होंने कम्बोडिया के तत्कालीन निवासियों को अपने धर्म्म में दीक्षित करके उन्हें सभ्य और सुशिक्षित बना दिया।
यह सब करके भी अगस्त्यजी को शान्ति न मिली। वायु-पुराण में लिखा है कि वे बर्हिद्वीप (बोर्नियो), कुशद्वीप, वराहद्वीप और शांख्यद्वीप तक में गये और वहाँ अपने धर्म्म का प्रचार किया। ये पिछले तीनों द्वीप कौन से हैं, पह नहीं बताया जा सकता। तथापि इसमें सन्देह नहीं कि ये बोर्नियो के आसपास वाले द्वीपों ही में से कोई होंगे।