पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१०

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पुरानी हिंदी हिंदी से इनका वडा सबध है। गोरमेनी तो मयुरा व जमदन आदि को भाषा है। इममे कोई वडा स्वतन्त्र प्रय नहीं मिलता किंतु इसका वहीं क्षेत्र है जो अजभापा, खडी बोली और रेखते की प्रकृत भूमि है । पेशानी का दूसरा नाम भूनमापा है। यह गुणाढ्य को अदभुतार्या वृहत्कथा मे अमर हो गई है। वह 'वड्डकथा' अभी नहीं मिलती। दो कम्मीरी पंडितो (क्षेमेद्र और मोमदेव) के किए उसके सस्कृत अनुवाद मिलने हैं। (वृहत्कथामजगे और कायामरित्सागर) कश्मीर का उत्तरी प्रात पिशाच (पिश = कच्चा माम, अश् = बाना) या पिशाश् देश कहलाता था और कश्मीर ही मै बृहत्कथा का अनुवाद मिलने से 'पैशाची वहां की भाषा मानी जाती थी । किंतु वानव मे पैशाची या भूतभाषा का स्थान राजपूताना और मध्यभारत हैं । मार्कण्डेय ने प्रारत व्याकरण में वृहत्कथा को केकयपैशाची मे गिना है। केकय तो कश्मीर का पश्चिमोत्तर प्रात है। सभव है कि मध्यमारत को पूतभाषा की मूल वृहत्कथा का कोई रूपातर उधर हुग्रा हो जिसके आधार पर कश्मीरियो के मस्कृतानुवाद हुए हैं। राजशेखर ने, जो विक्रम संवत् की दशवी शताब्दी के मध्य भाग में था, अपनी काव्यमीमासा मै एक पुराना श्लोक उद्धृत किया है जिसमें उम समय के भाषानिवेश की चर्चा है-'गोड (बगाल) प्रादि संस्कृत में स्थित है, लाट- देशियो की रुचि प्राकृत मे परिचित है, मरुभूमि, टक्क (टोक दक्षिणपश्चिमी पजाब) और भादानकर के वामी अपनश प्रयोग करते हैं, अवती (उज्जन), पारियान (वैतवा और चचल का निकाम) और दापुर (मदमोर) के निवासी भूतभापा की सेवा करते है, जो कवि मध्यदेश में (कन्नोज, अतवेद पचार आदि) रहता है वह सर्पभापानो मे स्थित है।' राजशेखर को भूगोर विद्या से बड़ी दिलचस्पी थी। काव्यमीमामा का एक अध्याय का अध्याय भूगोल- वणन को देकर वह कहता है कि विस्तार देवना हो तो मैग बनाया भुवनकोग देखो । अपने प्राश्रयदाता की राजधानी महोदय (कर्नाज)का उने वा प्रेम पा। कन्नौज और पाचाल को उसने जगह जगह पर बहुत बडाई को है । महोदय (कन्नौज) को मानो भूगोल का केंद्र माना है, कहा है दूरी को नाप महोदय ने १ लाकोटे, वियना मोरिएंटल सोसाइटी का जनल, जिल्द ६४, पृष्ठ ३५ प्रादि। २ बीजोल्यां के लेख में भी भादानक का उल्लेख है, यह प्रात राजपूताने मे ही होना चाहिए।