पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१०२

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८ पुरानी हिंदी १०१ बचाकर भागा, तपस्या करने जा बैठा । शिवजी ने प्रसन्न होकर व्याकरण दिया। उसे लेकर शास्त्रार्थ करने पाया । ऐंद्र व्याकरण का प्रतिनिधि वररुचि इस नए वैयाकरण को हरानेवाला ही था कि शिवजी ने अपने चेल को हिमायत पर, उसका पक्ष गिरता देव, हुशार बब बना दिया, वस ऐंद्र व्याकरण नष्ट हो गया--जिता. पाणिनिना मर्वे मूर्तीभूना वर पुन ।। इस कहानी मे, वड्डकथा के आधार से कथासरित्सागर में भी है, सार इतना ही है कि 'जिताः पाणिनिना सर्वे' ।।1 इस कथा मे वररुचि को पारिपनि का समकालिक, नही नहीं उमने कुछ पुराना, कहा गया है । वस्तुत वह पाणिनि मे कई सौ वर्ष पोछे हुआ। उसके पहले पाणिनि पर कई व्याख्यान के वार्तिक बन चुके थे । वेद के समय से प्रसिद्धि चली आती है कि वाणी का पहला व्याकरण इद्र ने बनाया' । वररुचि ( कात्यायन ) भी ऐंद्र सप्रदाय का था। किंतु उनने पाणिनि को उस्ताद मान लिया। सच्चे वीर की तरह अरने से प्रबन चोर के झडे के नीचे आ खडा हुा । कुफ छोडकर कावे में आ गया । उसने पाणिनि की रचना पर वार्तिक लिखे, किंतु अधीनता के साथ लोहा मानकर, यही कहा कि इतना और कह दो,२ इतना और गिनना चाहिए । पाणिनि को परिभाषाएँ उसने मान ली, पुरानी पादत से सध्यक्षर, सक्रम, समान परोक्षा, भवती या अद्यतनी भी उसके मुंह से निकलता रहा । पाणिनि के समय से उसके समय तक जो नए शब्द चल गए थे या अथो में परिवर्तन हो गए थे वे भी उसने गिन दिए । पीछे कई सो वर्ष बीतने पर, जिनमें कई गद्य और पद्य वार्तिक बने, यतजलि ने बडी व्याख्या या महाभाष्य बनाया। अनद्यतनी, हसनी या लह क्रिया के रूप का प्रयोग उस भूतकाल के अर्य मे होता है कि जो बीता १ तैत्तिरीय सहिता ६।४19, शतपय ब्राह्मण ४११५३११२, १५, १६ । २ इति वक्तव्यम् । ३ उपसख्यानम् । ४ पोछे के वैयाकरण, अपो को पुरानो शैली पर चगाना नया पाणिनि को सुधारक बताने के लिये, ऐस पदो को उनो वान ने कहते रहे है जिसने कुछ लोग हिंदी को जगह प्रार्यभाषा और नमस्कार की जगह नमस्ते कहते है ।