पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१०७

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१०६ पुरानी हिदी पुराने वैयाकरणो के नाम दिए इन्होने भी वैसे ही सून ढगें पर कई नाम दिए जिनमें कई कल्पित है। ये व्याकरण दो तरह के बने । एक तो हिंदुनो के वेदाग पाणिनि व्याकरण से ही हमारा काम क्यो ' चले इसलिये वौद्ध, दिगवर जैन, और श्वेतावर व्याकरण बनाए गए । उनका पठन पाठन भी हुआ टीकाएँ भी वनी, किंतु अपने गुट के बाहर प्रचार हो सका। यह वैसा ही आदोलन था जैसा मुसलमान जज, अब्राह्मण प्रतिनिधि और नेपध की जगह धर्मशर्माभ्युदय पढाने के लिये होता है । दूसरे वे जो पारिएनि की साकेतिक कठिनता से बचकर ग्रालसियो, राजानो, बनियो और साधारणजनो को दस दिन मे व्याकरण सिखाने के लिये बनाए गए। दोनो से अधिक काम न सरा क्योकि सार सस्कृत वाङमय में पाणिनि की परिमापानो के चलने से पहले पक्ष को प्रधिक पढने पर अपनी सोबी नौगढ़ा परिभापाएँ भूलनी पडती और दूसरे पक्ष में मुग्धबोध और खोटे (छोट) तन्नो से नाम के अनुसार हो ज्ञान होता। दूसरे ढग के व्याकरणों का प्रचार बहुत कुछ रहा और है, क्योकि पहने केवळ 'पार्पदकृतिथे और 'जो कुछ उनमै तत्वं मत में 'अयु' । ( या धातु का अनद्यतनभूत प्रथम पुरुष बहुवचन ३ । ४११११, ११२) जैन शाकटायन को केवल, 'अय' ही मानना चाहिए था किंतु वह भी 'चा' लिख गया । १ एक जैन पोयी मे ही जनेद्र व्याकरण के 'राने प्रभाचद्रस्य' के प्रभाचद्र को कल्पिन बताया है तथा हेमचन्द्र के द्वथाश्रय काव्य के टीकाकार ने सिद्धसेन को । ( वेलवलकर, पृ० ६६) । २ छान्दसा स्वल्पमतय शास्त्रांतररताश्च ये। ईश्वरा व्याधिनिरतास्तथालस्ययुताश्च ये ॥ वणिक् सस्यादिससक्ता लोकयानादिपु स्थिता । तेपा क्षिा प्रबोधार्थम् ( कातन की टीका व्याख्याननिया) ३ नरहरिकृत वालाचवोध-दशभिदिवसईयाफरणो भवति । इन टिप्परिणयो में कई जगह डाक्टर बेलवलकर के उत्तम निवध 'सिस्टम्स आफ संस्कृत ग्रामर की सहायता ली गई है । ४ बोपदेव का। ५. का-तन्न ।