पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१०९

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१०5 पुरानी हिंदी मे उसने पूरी गाथाएं, पूरे छद और पूरे अवतरण दिए हैं । यह हेमचन्द्र का दूसरा महत्व है । यो उसने एक बडे भारी साहित्य के नमूने जीवित रखे जो उसके ऐमा न करने से नष्ट हो जाते । इसका कारण क्या है ? जैसे पहले कहा गया है। जिन श्वेतावर जैन साधुओ के लिये, या सर्वसाधारण के लिये, उसने व्याकरण लिखा वे मस्कृत प्राकृत के नियमो की, उनके सूत्रो की सगति को पदो या वाक्यखडो मे समझ लेते । उसके दिए उदाहरणो से न समझो तो संस्कृत और कितावी प्राकृत का वाडमय उनके सामने था, नए उदाहरण हूँढ लेते । कितु अपभ्रश के नियम यो समझ मे न पाते । मध्यम पुरुष के लिये 'पइ', शपथ मे 'थ' को जगह 'ध' होने से सवध, और मक्कडधुग्धि का अनुकरण-प्रयोग विना पूरा उदाहरण दिए समझ मे नही आता (देखो आगे ५६, ८८, १४४) । यदि हेमचंद्र पूरे उदाहरण न देना तो पढनेवाले जिनकी संस्कृत और प्राकृत आकर-प्रथो तक तो पहुंच थी कितु जो 'भापा' साहित्य से स्वभावत. नाक चढाते थे उसके नियमो को न समझते । इन सव उदाहरणो का संग्रह और व्याख्यान इस लेख के उदाहरणाश के द्वितीय भाम मे किया जाता है । ये उदाहरण अपभ्रश कहे जायं किंतु उस समय की पुरानी हिंदी ही हैं, वर्तमान हिंदी साहित्य से उनका परपरागत सवध वाक्य और अर्थ से स्थान स्थान पर स्पष्ट होगा, स्मरण रहे कि ये उदाहरण हेमचद के अपने वनाए हुए नही है, कुछ वाक्यो को छोडकर सब उससे प्राचीन साहित्य के हैं । इनसे उस समय के पुराने हिंदी साहित्य के विस्तार का पता लगता है। यदि संस्कृत साहित्य बिलकुल न रहता तो पतजलि के महाभाष्य मे जो वेद मौर श्लोकों के खड उद्धृत हैं उन्ही से सस्कृत साहित्य का अनुमान करना पडता । वही काम इन दोहो से होता है। हेमचद्र ने बडी उदारता की कि ये पूरे अवतरण दे दिए । इनमै शृगार, वीरता, किसी रामायण का अश [जेवडु अतरु० (१०१), दहमुहु भुवण. (५) ], कृष्णकथा [हरिनच्चाविउ पगणहि (१२२), एकमेक्कउँ जडवि जोएदि० (१२६) ], किसी और महाभारत का अश [इत्ति योप्पिणु सउणि ० (७८)], वामनावतार कथा [ मइ भणिपउ बलिराय ( ६६ )], हिंदू धर्म [ गग गमेप्पिणु । (१६६, १६७), ब्रास १ पत्रिका भाग २ पृ० १७ ।