पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

L लक्ष्य लक्षण प्राकृत भापा ११० पुरानी हियो काणी, मगध, गौड, कान्यकुब्ज, दशार्ण, वेदि, रेवातट, मथुरा, जगल देश के राजाओं की अधीनता का भी वर्णन है। कुमारपाल सो जाता है। सातवें सर्ग के आरभ में राजा उटकर परमार्थ चिता करता है ! उसमे काम; स्त्री आदि को निदा, जैन आचार्यों की स्तुति, नमस्कार आदि के पीछे श्रुतिदेवी की स्तुति है। श्रुतदेवी कुमारपाल के सामने प्रकट हुई और राजा के साथ उसका धर्मविषयक सभापण चला। आठवे सर्ग भर मे श्रुतदेवी का उपदेश है । हेमचद्र के प्राकृत व्याकरण ( सिद्धहम शब्दानुशासन के आठवे अध्याय) और कुमारपालचरित का सबध नीचे एक तालिका से बताया जाता है- उदाहरण अष्टमाध्याय पाद १ सू० १-२७१ कुमारपाल चरित पाद २ सू०१-२१८ सर्ग १,२,३,४,५,६, पाद ३ सू०१-१८२ ७, गाथा-१-६३ पाद ४ सू० १-२५६ अष्टमाध्याय कुमारपालचरित शौरसेनी पाद ४ सू० २६०-२८६ सर्ग ७ गाथा ६५-१०२ मागधी २०७-३०२ सर्ग ८ गाथा १-७ पैशाची ३०-३२४ ८-११ चूलिका पैशाची ३२५-३२८ ३२६-665 इससे स्पष्ट होगा कि जिस भाषा का व्याकरण कहा है उसी मे कुमारपालचरित के उस अश की रचना की गई है। पुरानी हिंदी के व्याकरण के विशेष नियमो के १२० सूत्र है, उदाहरणो मे जो प्राचीन कविता से दिए गए है १७५ अवतरण है, पदो, वाक्यो और दोहराए अवतरणो की गणना नहीं (कई दोहो के खंड बार बार उदाहरणो की तरह कई सूत्रो पर दिए गए है ) कितु स्वरचित उदाहरणो मे वह सब विषय:६ छदो मे आ गया है । इसका कारण है कि एक एक छदा मे कई उदाहरण आ गए हैं। "देशी नाममाला हेमचन्द्र को ऐसी रचना प्रिय थी। उसने देशी नाममाली नामक एक " 17 । " १२-१३ " १४-८२ अपभ्रश " "