पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/११६

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पुरानी हिंदी ११५ । याना आदि बहुत धूमधाम से कुमारपाल ने किए और कराए । जन माहित्य में इन गुरुशिष्यो का बहुत प्रशसापूर्ण उल्लेख है । राजा ने २१ ज्ञानकोश (पुस्ता भडार) कराए। छतीस हजार श्लोको का विपष्टिशलाकापुरुषचन्त्रि हेमचन्द्र से बनवाकर सोने रूपे से लिखाकर सुना। एकादश अग, द्वादश उपाग नोने में लिखावाकर सुने । योगशास्त्र आदि लिखवाए । गुरु के ग्रयो को लिखनेवारे ५०० लेखक थे। एक दिन लेखकशाला मे जाकर राजा ने लेखको को 'कागदो' पर निते देखा। गुरु ने कहा श्रीताल पनो का टोटा पा गया। राजा को लज्जा प्रा। 'उपवास किया । खर ताडो (भद्दे ताड जिनके पत्ते लिखने के काम के नहीं )गे पूजा करके प्रार्थना की, तो वे सवेरे धीताड हो गए। फिर अथ लिखे जाने लगे। हेमचंद्र ने कई लक्ष श्लोको के ग्रथ बनाए जिनमे प्रधान ये है-अभिधानाचा- मणिग्रादि कई कोश, काव्यानुशासन, छदौनुशासन, देशीनाममाला, घायर पय्य (मस्कृत तथा प्राकृत) योगशास्त्र, धातुपारायण, विपप्टिशलाकापुर पर्चाग्न, परिशिष्ट पर्च, शब्दानुशासन (व्याकरण) । उसने अपने रचे ग्रयों को प्राय वृत्तियां भी वनाई है। ८४ वर्ष की अवस्था में अनशन से हेमचन्द्र ने प्रारगन्याग किया । कुमारपाल भी लगभग छ मास पीछे मर गया। . सिद्धहैमव्याकरण की रचनार पहले कभी हेमचन्द्र परब्रह्ममयपरमपुरुप प्रणीतमातृकाप्रप्टादगनिपिपिया- सप्रकटन प्रवीण ब्राह्मी आदि मूर्तियो को देखने कश्मीर चले थे तो भगानी ने उनका मार्गक्लेश बचाने के लिये मार्ग ही मे आकर दर्शन तथा विद्यामव दिए। सिद्धराज जयसिंह के यहाँ उनका पाडित्य देखकर कई अमहिए (ब्राह्मणों) ने कहा कि हमारे शास्त्र (पाणिनीय व्याकरण ) के पटने में उनकी यह दिना है। सिद्धराज के पूछने पर हेमचद्र ने कहा कि महावीर जिन ने निगममा ने जो इंद्र के सामने उपदेश दिया था वह जैनेंद्र व्याकरण ही हम परते है ने कहा कि पुराने को छोडकर किसी समीप के कर्ता का नाम लो। पाfr सिद्धराज सहायक हो तो नया पचाग व्याकरण वनवावे । राजा पे स्वीमा भने पर हेमचद्र ने कहा कि काश्मीर मे प्रवरपुर मे भारतीकोश में पुगगन पाक १ जिनमडन का कुमारपालप्रबध पृ० ६६-६७ । २. जिनमडन के कुमारपालप्रवध से, पृष्ठ १२ (२), १६ (२) प्रति । ३. देखो ऊपर, पृ० १२५, दि० २ i ४ विल्हण कवि की जन्मभूमि ।