पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१४५

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१४४ पुरानी हिंदी i मेरे, कत के, दो, दोष ( हैं।) हे प्रालि, मत झख, अलपल (= बकमत) देते के मैं, पर, उवरी हूँ, जूझते की 'तलवार ( उवरी है)-अल्लपल तो बके मत; सखी । मेरे पति के दो दोप हैं, देते देते तो मैं वची और लडते लड़ते तलवार।होओ-लघु पढो । दोसडा-दोष (कुत्सा मे ड) हेल्लि-हे प्रालि । अंख-हिं० झखमा, झीखना। पालु-अडवड । देन्त, जुज्झन्त-वर्तमान धातुज । हउं । हौं । उव्वरिय-स. उर्वरित, हिं० उवरी। (६४)) जई भग्गा पारक्कडा तो. सहि मझ पिएण। अह भग्गा अम्हहतरणा तो तें मारि अडेणं । यदि, भागे, पराएं, तो, 'सखि, मेरे पिया से, और (जो) भागे, हमारे, तो उससे, मारे हुए से । यदि पराए पक्ष की सेना भागी हो तो मेरे पिया ने उसे भगाया होगा, यदि अपने भाग रहे हैं तो उसके मारे जाने पर ही ऐसा परि- णाम हो सकता है । भग्गा-भग्ना (सं०) भांगे अर्थात् टूटे, हारे इसी से भागे। पारक्कडा, अम्हह तणा-पराए और हमारे । मारिअड-मारितक (सं०) प्रसिद्ध दोहा है। (६५) मुह कवरिवन्ध तहे सोह धरहिं न मल्ल जुज्झ ससिराहु करहिं । तहे सहहिं कुरल भमर-उल-तुलिभ नं तिमिर डिम्भ खेलन्ति मिलिय॥ मुख और चोटी का बंधना, उसके, शोभा, धरते हैं, मानो, मल्लयुद्ध, शशी और राहु, करते है, उसके, सोहते है, केश, भ्रमर कुल (से) तुलित ( तुल्य ), मानो तिमिर (अंधेरे) के बच्चे खेलते हैं, मिले हुए (-मिलजुल कर) 1नं = 'जैसे, नाई । 27 Teil;991, of ki jihir, बप्पीहा पिउ पिउ भणवि कित्तिउ रुग्रहि हयास । तुह जलि महु पुण वल्लहई बिहुवि न पूरिभ पास ॥ पपीहा, पिउ, पिड, कहकर, कितनी वरि, रोता है, है हताश तेरी, जल में ( = जल सें) मेरी पुनि, वल्लभ मे (से) दोनो मे ही, न, पूरी, पास । 1 ।

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