पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१५२

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पुरानी हिंदी १५१ (८६) जइ केवइ पावीसु पिउ अकिया कुड्ड करीस् । पाणीउ नवइ सरावि जिवं सबङ्गे पइसीस ॥ यदि किसी प्रकार पाऊँगी प्रिय (को), (तो) न किया, कौतुक, कलंगी, नी, नए (मे), सकोरे (मे), ज्यो सर्वाग में प्रविशृंगी (धुसूंगी) । नए मिट्टी के वरतन में पानी की तरह रोम रोम मे रम जाऊँगी । पावीम, करीमुं, पइसीमुं- भावना, भविष्यत गुजराती श, राजस्थानी स्यु । अकिया-अकृत, किसी ने नो न किया हो, कुड-कौतुक, राज० कोड, सरावि-स० शरावे । (१०) उन कणिप्रारु पफुल्लिअउ कञ्चणकन्तिपकासु । गोरीवयविरिणज्जिाउ न सेवई वणवासु ॥ ओ ( = देख ), कनियार, प्रफूला (है), काचन-कातिप्रकाश, गोरी-वदन- वनिर्जित, नाई (मानो) सेता है, वनवास । वन मे विकसित होने के कारण की उत्प्रेक्षा है । उन-देख (प्राकृत), करिणमारु (स.) कणिकार (पजावी पहाडी) नयार, अलमताश, पीले फूलो से लद जाता है। गोरी-देखो प्रवघ० १४ पत्रिका भाग २ पृ० ४७) न-वेद का उपामावाचक 'न' बांध मे नही बंध सका विाह मे चला आया। (११) नासु महारिसि एउ भण्इ जइ सुइसत्य पमाण । मायह चलण नवन्ताह दिवि दिवि गङ्गाहाण ॥ व्यास, महाऋषि, यो (यह), भरणता (कहता) है, यदि, श्रुतिशास्त्र, प्रमाण. हैं तो) मानो के, चरण, नवतो के, दिन दिन, गगा-स्नान (है) । बास-व्याम, सर के लिये मिलाओ शाप - साप, मायह-मातनों के, मातृ-मायि माय, माइ, Tई, नवताह-नवतो, नमतो, प्रणाम करतो के, दिविदिवि-वेद का दिवे दिवे खौ ऊपर (६०) मे न। (१२) केम समप्पउ दुछ दिणु किध-रयणी छुड्डु होइ ।

नव वहु दसरण लालसउ वहइ मरणोरह सोइ ।।