पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१५९

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१५८ पुरानी हिंदी (११३) चचल जीविउ धुवु मरण पिन रूसिज्जइ काइ । होसइ दिनहा रूसणा दिब्बड वरिससयाइ ।। चचल, जीवित, ध्रुव, भरण, ( है ) पिय, रूसा जाता है, क्यो ? होगें, दिवस, रूसने, दिव्य वर्षशत (की तरह लबे पोर असह्य) । रूसिज्जइ- रूसीज, होसइ-होशे, होसी रूसणा, दिग्रहा का विशेपण, रूसने ( के ) दिवस। ( ११४ ) माणि पणछैड जइ न तण तो देसडा चइज्ज । मा दुज्जण करपल्लवेहि दसिज्जतु भमिज ॥ देखो सोमप्रभ (१ पत्रिका भाग २ पृ० १३६ ) मारिण पठ्इ--- मान प्रनष्ट होने पर (भावलक्षण), चइञ्ज--छोडा जाता है (दोधकवृत्ति), कितु भमिञ के साथ से चइज भमिञ्ज = तजीज भमीज होना चाहिए, दसिज्जतु-दिखाया जाता हुआ, दोधकवृत्ति के अनुसार -'दश्यमान' डसा जाता हुआ नहीं। ( ११५) लोणु विलिज्जड पारिणएण अरि खलमेह म गज्ज, । बालिउ गलइ मुझुम्पडा, गोरी तिम्मइ अज्ज ।। लोन, विलाता है पागी से, अरे, खल मेघ । मत, गरज, हे जलाए गए। -गलता है, झोपडा, गोरी, भीजती है, भाज। स० लावण्य, हिं. लौन (जैसे 'सलोना' 'नौना' मे नोन, फारसी नमक, सौदर्य अर्थ मे पाता है। 'अमरुशतक में एक प्रक्षिप्त श्लोक है कि जब से प्रेमपियासे, मैने उसका अधर पान किया तब से तृपा वढती ही जाती है, क्यो न हो, उसमे लावण्य है न ? नमक से प्यास बढती है। उसपर टीकाकार इस -कल्पना की ग्राम्यता पर चुटकी लेता है कि वाह कवि क्या है कोई साँभर की खानका खोदनेवाला है । यहाँ नमक पानी पड़ने से गलता है यही लेकर उक्ति है कि दुष्ट मेघ, मत गरज, झोपडा गले.. जाता है, गोरी भीगती है, -लवण (लावण्य).विलाता है, बस कर । लोण - -लवण .और लावण्य, विलिज्जइ- विलीयते (सं०), वालिउ -वाल्या (राज.), गाली, दग्ध, तिम्मइ-(स०) तिम्, गीला होना, 'दोधकवृत्ति' दो अर्थ करके भी सष्ट नहीं हो सकी।