पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१६३

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१६२ पुरानी हिदी ( १२६ ) जि सुपुरिस तिवं धघलई जिवं नइ तिवं वलणाई । जिव डोंगर तिवं कोट्टर हिना विसूरहि काइँ ।। ज्यो, सुपुरुप, त्यो झगडते है, ज्यो, नदी, त्यो, बलन ( मोह ), ज्यो डूंगर (पहाड ), त्यो, कोतरे ( खोह ), हे हिया 1 विसूरता है, क्यो ? मिन्नता मे झगडे होते ही है घुघलइ--धबॅलना-झगडना, धाँधल होना, विसूरना-

  • हिंदी ( पृ० १५५)।

( १२७ ) जे छड्डेविण रयणनिहि अप्पउँ तडि घल्लन्ति । तह सखहँ विट्टालु परु फुक्किज्जन्त भमन्ति ॥ जो, छोडकर, रत्ननिधि (समुद्र ) को, अपने को, तट पर, घालते (फैकते) है, उनको, शखो को, विटाल, पराए, फंकते हुए भ्रमते (घूमते ) हैं । अपना स्थान छोडने से विडवना होती है । छड्डेविणु-छाँडकर पूर्वकालिक, विद्यालु- अधम जन ( दोधकवृत्ति ) अस्पृश्यससर्ग ( हेमचद्र), विटाल- बिगडैल, विटलना = विगडना, विटॉलना-बहकाना, फोडना, खराब करना। ( १२८ ) दिवेहि विढत्तउँ खाहि वढ संचि म एक्कुवि द्रम्मु । कोवि द्रवक्कउ सो पडइ जेण समप्पइ जम्मु ।। दैव से, दिया हुआ, खा, मूर्ख ! संचय कर, मत, एक भी द्रम्म कोई, डर, सो पड़े, जिससे, समाप्त होवे, जन्म । विढत्त-अर्जित? ( दोध०), सौंपा, संचि-सचना (सचय करना) धातु पुरानी हिंदी और पंजावी मे है, द्रम्मु- एक सिक्का, दाम, द्रवक्कउ-द्रव को, डर दडबडी। ( १२६ ) एकमेक्कउँ जइवि जोएदि हरि सुट्ठी सव्वायरेण तोवि देहि जहि कहिंवि राही को सक्कइ सवरेवि पड्ढनयणा नेहिं पलुट्टा ।। एक एक (गोपी) को, यद्यपि, जोहता, है, हरि, सुठि, सर्वादर से, तो भी, दौठ, जहाँ, कही भी राधा ( है वही है ) कौन, सके, सवरण करने को, दग्ध