पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/१७१

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१७० पुरानी हिंदी स्वामी (का) प्रसाद, सलज्ज, पिय, सीमासधि मे, वास, पेखकर, वाहुबलो- ललित (पिय को), नायिका, छोडती है, नि श्वास । राजा की कृपा जिससे वह कभी छुट्टी न दे और कठिन कामो पर ही भेजे, पिया सकोची कि काम के लिये नाही न करे न छुट्टी मांगे , रहना सीमा पर जहां नित नए झगडे हो, और वाहुबल से गर्वीला पिय कि आगे होकर झगडा मोल ले-बेचारे इतने कारणो से विरह के अत का सभव, जानकर उसासें भरती है । वाहुवलुल्लडा वाहु + वल + उल्लल, उल्लट, या 'बाहु' का विशेषण 'वलुल्लड' बलदर्प से भरे वाहु (पिय को, देखकर), धरण-देखो (१, ७०) मेल्लइ-रक्खे, छोडे, मेले । (१५३ ) पहिया दिछी गोरडी दिट्ठी मग्गु निमन्त । असूसासेहि कञ्चुअा तितुवाण पथिक | दोठी, गोरी? (हाँ) दौठी, मग (को), देखती (हुई), आँसू (और) उसासो से, कंचुक को, गीला, सूखा करती (हुई ) । अाँसुप्रो से गीला और उसासो से सूखा, (८०) या तितुन्वाण-ततूद्वान, ताना बाना, आँसुप्रो का ताना; उसासो का बाना। गोरडौ-देखो ( ८२, १२३ ), 'डी' (१४०), नियन्त-देखती, तितुव्वाण-तीमा, तिमित = गीला, देखो तिम्मइ ( ५१५ )। 7 करन्त ॥ ( १५४ ) पिउ आइठ सुग्र वत्तडी-झुणि कन्नडइ 'पइट्ट । तहो विरहहो नासन्ताहो धुलडि आवि त दिठ्ठ ।। पिय, आयो, ( इस ) शुभ, वार्ता, ( की) ध्वनि, कान. मे, पैठी उस (को), विरह की, भागते (की), घ्ल भी, न, दीठी। ऐसा भागा कि खोज तक न मिले, लगोटी भी हाथ न आई। वत्तडी, कन्नड धूलडिया-अव 'डी' या 'ड' पर लिखना व्यर्थ है । नासन्त-नश्यत (स०) नष्ट होना, प्रदर्शन होना, भागना, पजावी न्हस्-भागना । (१५५ ) सदेसें काई तुहारेण ज सगहो न मिलिज्जइ । सुइणन्तरि पिएं पाढिएण पिन पिनास किं छिज्जइ॥