पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/३६

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पुरानी हिंदी ३१ . t र है जिसको यहां चर्चा की जाती है। टानी कहते हैं कि यो पुस्तक में कई

प्राकृत काव्य इस प्रसग के नहीं दिए हैं जो एक प्रति में हैं । सभव है कि उनमें

। कुछ और हिंदी कविता रही हो । सउचित्तहरिसट्ठी मम्मरबह बत्तीस डीहिया । । हियम्मि ते नर दडढ़ सौझे जे वीससद थिया ।। पाठातर-चित्तहसी मणह. अस्सी ते नर, हरिसठी मम्मपत्ति, हिम्मि, पचासडोहिया, हियम्मी, सिय जे पत्तिज्जइ ताह, अम्मी सीजे, पतिठवइ तियाह । अर्थ-सब (के) चित्तो को हपित करने (या हरने) के अर्थ प्रेम की वातें 1 बनाने मे चतुर स्त्रियो मे जो विश्वास करते हैं वे हृदय मे बहुत दुख पाते हैं। पाठातरो से इस दोहे के कई रूपातर हो यह जान पडता है। जे पत्तिज्जइ ताह (जो पत्तीजते है उन्हें या उनमे) से जान पड़ता है कि पूर्वार्द्ध का अंत और तरह भी रहा हो। 'मम्मरणह वत्तीस' का अर्थ कामदेव की बातें किया जाता है, किंतु पाठातरो मे छत्ति (स), पञ्चास, मिलने से सभव है कि यह बत्तीस भी सख्या हो और इसमे स्त्रियो के पुरुषो को मोहन करने की कलामो की परिसख्या हो, जैसे नाई को छत्तीसा या छप्पना कहते हैं । छप्पन्ना का अर्थ, ५६ कलायुक्त नही, किंतु छह दिवाला (सं० पटान) है, पटप्रज्ञ बुद्ध की उपाधि भी है। सउ--सब, राजस्थानी से, सो, मारवाडी सेंग (हैंड)। हरिसट्टी-हपं अर्थ, या हर (ण) + सायं, राजस्थानी साठे - हाठे = पाठे य पाटे = वास्ते, मराठी साठी-लिये । मम्मणह-मन्मथ % कामदेव, या मएमए करना, महीन महीन बातें (चोचले), ह = का । बत्तीस-बातो में। डीहिया-चतुरो (स०दक्ष) मैं, गुजराती मारवाडी डाह्या, डोहि = दीर्घ, वढीचढी, मिलामो स० दीपिका (वावडी)= हि दिग्धी, डिग्गी, डीपी । हियम्मितस्मिन और हि० में के बीच मे 'म्मि' है । दडढ़-दृढ । सोझे-दुःख पाता है। राजस्थानी । सीझना - गलना या पकना (दाल का) स० सिध्यति ले हैं, सभव है कि यहां पाठ योस हो जो स० खिद्यति से है । वीससइ-विश्वास करते हैं । पत्तिज्जह = पतीजने है, पतियाते है, प्रत्यय करते हैं, सहसा जनि पतियाहु (तुलसीदास), पंजाबी में पतियाने का अर्थ मानना था रिझाना भी है। पतिन्थइनोवन पत्तिजइ का लेखप्रमाद है, अनुस्वार पर आगे टिप्पणी देखो। पियां, लियाह-न्त्रियों में । i .