पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/५८

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पुरानी हिंदी है मा. 7

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F । पदच्छेदी से, समासो से, अनेकार्थो से इन एक नोक के भागवत के पहले श्लोक 'जन्माद्यस्य यत' की तरह मो अयं करना बडे पादित की वात है। चीया अथ यह हमारा कुमारपालप्रतिबोर है। मतार्य काञ्च में कुमारपाल विश्यक व्याख्या में दो एलाक “पदवोवाम = जा हमने (अन्यत्र कहा है" कहकर लिये है जो इनके बाकी कानो में नहीं है, उसमे ममय है कि सोमप्रभ ने और भी रचना का हो । उनी शतार्थ गाय को प्रन्नि से जाना जाता है कि सोमत्रम दीक्षा लेने में पूर्व पारवाड जाति के वैश्य थे, पिता का नाम सर्वदेव और दादा का नाम जिनस्व था। में किसी राजा का मन्त्री था। सुमतिनाथचरित की रचना कुमारपाल के राज्यकाल में हुई। उन समय कवि अहिलपाटन में सिद्धराज जयसिंह के धर्मभाई पोरवाउ यश्य सुकवि श्रीपाल के पुत्र, कुमारराल के प्रोति कवि मिद्धपाल की पावधमाना में रहता था। श्रीपाल' का उल्लेख प्रवध चितामरिण वाले नेय में प्रा गया न है। यह श्रीपाल सोमप्रभ की प्राचार्य परगरा में गुरु देवमूरि गिप्प था और सोमप्रभ के सतीर्थ्य हेमचन्द्र ( प्रसिद्ध वैयाकरण से भिन्न ) के बनाए 'नामेयनेमि' कान्य को उसने सबोधित किया था, उस काव्य की प्रशस्ति मे श्रीपाल को एक दिन मे महाप्रवध बनानेवाला' कहा है। कुमारपान की मृत्यु सं० १२३० मे हुई। उसके पीछे अजयदेव - राजा हुआ जिसने सं० १२३४ तक राज्य किया। उसके पीछे मूनराज F ने दो ही वर्ष राज्य किया। शतार्थी काव्य मे उम तक का उल्ले, इसलिये उस श्लोक और उसकी सौ व्याख्यानो की रचना ० १२९६ तक हुई। कुमारपालप्रतिबोध सं० १२४१ में, अर्थात् कुमारपाल को मुत्य के ग्यारह वर्ष पीछे सपूर्ण हुमा। उस समय भो कवि उनी कपि मिद्धपान की वमति मे रहता था। वहां रहने का कारण नेमिनाग के पुत्र कि अभय कुमार के पुत्र हरिश्चन्द्र प्रादि और कन्या श्रीदेवी प्रादि को प्रीति थी। समवत हरिश्चन्द्र ने इस प्रथ को कई प्रतियां लिखाई, स्तुि प्रशस्ति या मिनामो वि० स० १२०८ की प्रानदपुर के यन को प्रगति (काव्यमाला, प्राचीन लेखमाला, न० ४५ ) का प्रतिम इनोक- एकाहनिष्पन्नमहाप्रवध श्रीसिद्ध राजप्रतिपन्नबन्धः । श्रीपालनामा कविचक्रवर्ती प्रशस्तिमेवामकरोत् प्रास्ताम् ।। ✓ . --- १