पृष्ठ:पुरानी हिंदी.pdf/६६

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पुरानी हिंदी ६१ । का ई ये पुराणो और ब्राह्मणों के पहले की गाथाएं पुराणो की बीजम्यस्प है और वैसे ही मौको पर उद्धृत की गई हैं जैसे सोमप्रभ की रचना में अपना कविता । भाषाविचार से देखा जाय तो जमे माहागो को रचना में ये गाथाएं सरल मालूम देती हैं, जैसे भारत आदि की रचना मे न उधन गाथानो मे अधिक सरलता है, वैसे ही सोमप्रभ की वृत्रिम प्रकृत के नए टकसाली सिमको से ये घिसे हुए लोक्प्रचलित मियके अधिक प.िचिन और प्रिय मालूम देते हैं। कृत्रिम प्राकृत की चर्चा पाने से कुछ उसकी बात भी कर लेनी चाहिए । यह कोई न समझे कि जैसी प्राकृत पोथियो मे मिलती है वह कभी या यही की देशभापा थी। महाराष्ट्री, मागधी और गारमेनी नामी में उन्हें वहाँ को देशभाषा नही मानना चाहिए । संस्कृत के नए पुराने नाटको मे भिन्न रिन पात्रो के मुंह से जो भिन्न भिन्न प्रा त कहलवाने की चाल है, उसमे भी यह न जानना चाहिए कि उस समय यह जाति या वर्ग वैमी भाषा बोलना था। यह केवल साहित्य का सप्रदाय है कि अमुक मे अमुक भाषा या विभाया नहलानी चाहिए । प्राकृत भी एक तरह की मम्वृत्त को सी विनायी भाषा हो गई थी। पुराने से पुराने पत्थर और धातु पर के लेख सपन नही मिलते, वे प्राकृत या गडवड सस्कृत में मिलते है । उस प्राका को हिमीद मे पाप बांध नहीं सकते । मागधी का मुष्य लक्षण 'र' की जगह ' मोर अकारात शब्दो के वर्ताकारक के एयदचन में रायत म ( )या शौरसेनी "पी' की जगह 'ए' का माना गिरनार शादि तिमी लेखो मे मिलता है और महागष्ट्री के यई निह पूर्वतर के लेखो मे मिलते है । शौरसेनी के वई माने हए रक्षण धिमा की कन्हेरी आदि गुफापो के अभिलेखो मे मिलते हैं । माहित्य वी पापा सो 2 ला

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राना उनी . या कर्णपर्व में शल्य और कर्ण की बातचीत में यः दिनोवारमा गाय तथा कई जो गाधामप्यत गायति ये पुरादिदो जना उद्धृत की गई है। यया विरणपुराण में-- शनर्यात्यबला रम्या हेमनि पदभूषिता । अलमाता विमिभावस्तिराप्रमरिता । ऐसी गाधामो का पूरा तथा तुलनात्मक माह म्हुत देय होगा। । ! 11