पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१३५

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पादरी साहब का व्यर्थ यत्न ] ११३ कथा है। निर्धन हिन्द भी इन स्वादों से बंचित हैं, ईसाई भी। प्रत्यक्ष में मद्यपान करने वाले मसीही की भी अपकीति होती है, प्रच्छन्न रूप से हिन्दू भी होटलभोक्ता हई हैं । बरंच हिन्दू बने रहें तो बाममार्गी हो के, मद्य मांस तो क्या है, अघोरी होके, और भी घिनही चीजें खा सकते हैं। ऊपर से कुछ सम्पन्न हों तो ओझा जी और नाथजी कहला के पुजा सकते हैं । किरिस्टान होने में क्या धरा है ? कोई खास मजा नहीं। ऊपर से महा हानि ये है कि आप किसी काम के न रहे। स्त्रियों की लजा जाती रहै, बंश हो वुह बुजुर्गों का नाम न चलावै, देश और जाति का हित दमड़ी भर न हो सके । हिन्दू रह के भ्रष्ट भी कहलाते तो भी सभाओ में बुलाए जाते । कभी २ पैसा टका दान करते सो भी किसी ब्राह्मण के घर जाता। ऐसी २ अनेक बातें हैं जिनको सहस्त्रों लोग जानने लगे हैं और इन्ही विचारों से क्रिस्तानता को उन्नति में ऐसा पाला पड़ गया है कि बरसों में, किसी ठौर पर, जोई ही भूखा टूटा क्रिस्तान होता होगा। सो भी उच्च जाति के पढ़े लिखे, खाते पीते घर का तो शायद लाखों में एक होता हो तो होता हो। तिस्पर भी आर्यसमाज, थियोसाफिक्यल समाज वुह बिघ्न हैं कि अपनी चलते किसी प्रकार दृमरों की टही जमने नहीं देते। पाडला साहब के साथी और भी आस्तीन का सांप हो रहे हैं, जिनके मारे ईश्वर हो का होना हास्यास्पद हो रहा है, ईसा तो कहां रहते हैं। इधर पतित पावन अबगे- द्वारण की दया से कुछ लोग प्रायश्चित कराके फिर भी हिन्दू बना लिए गए हैं, और परमेश्वर ने चाहा, ऐसी ही चर्चा बनी रही, तो यह रीति चल निकलेगी। इससे हम कहते हैं कि अब पादरी साहब का श्रम व्यर्थ है। नाहक सैंकड़ों रुपया प्रचारकों को दे देते हैं। निरर्थक भयाजीयों को देते हैं और अपनी बिडम्बना कराते हैं। इससे तो यदि वही धन और मन भारत के हित में दें तो यश भी हो। हम लोग भी उनके शुभचिन्तक हों और बेबिल के अनुसार भी धर्म ही हो। हम भी तो आदम के नाते, महारानी के नाते, उनके भाई ही हैं । नहीं तो एशिया और यूरप, एक ही गोलार्द्ध में होने से, पड़ोसी तो बने बनाए हैं। बरंच मसीह की जन्मभूमि हमारी और भी. पड़ोस है। अथवा यह न हो सके तो मुक्ति फौज के सिपाहियों की भांति भगवान का भजन करें जिसमें सचमुच जन्म सुधरे । इस व्यर्थ के प्रयत्न का तो कुछ अर्थ न होगा। हिन्दुओं भर के वकील हमारे गोस्वामीजी का बवन अब सार्थक हो रहा है कि "चही करो किन कोटि उपाया। इहां न व्यापिहि रावरि माया ।" ईशपरीक्षादि में महात्मा मसीह की महिमा के विरुद्ध लेख आते हैं। इस पाप का मूल भागी कोन है ? आप हो का व्यर्थ प्रयत्न । खं. ४, सं० ६ ( १५ जनवरी ह० सं० ३ },