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पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१३६

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जवानी की सर मनुष्य का शरीर पांच तत्व से बना है-छिति जल पावक गगन समीरा, पंच रचित यह अधम शरीरा' और तीन अवस्था है-बाल्यअवस्था, युवावस्था, वृद्धावस्था । इस क्रम से दो अवस्थाओं में दो २ तत्व और तीसरी में केवल एक तत्व का आधिक्य रहता है। लड़कपन में पृथ्वी और जल तत्व का प्राबल्य होता है। इसी से बहुत छोटे बालक धूल में खेलना, मट्टी खाना, खिलौनों से प्रसन्न होना अथच पानो छपछपाना, बरसते में भीगना, तनक २ सी बात पर रो देना आदि बहुत चाहते हैं और बुढ़ापे में केवल आकाश तत्व रह जाने से, बल से, बुद्धि से, पौरुष से, अर्थात् सभी रीति से शून्य हो जाना पड़ता है। पर जवानी वुह अवस्था है कि जो कुछ करना है, जो कुछ होना है सब इसी में कर सकते हैं। क्योंकि अग्नि तत्व जाज्वल्यमान रहता है और वायु तत्व प्रचंड । शरीर क्या है मानों रेल का अंजन है। जिधर झुका, पूरी सामर्थ दिखला दी। पूरा जोर हर बात का अभी है। इसी से लोग लड़कों से कहा करते हैं, अभी तुम क्या जानते हो, क्या समझते हो, क्या कर सकते हो ? अभी तो 'नेक अहो मस भीजन देहु, दिना दस के अलबेले लला हो' । और बुड्ढों से कहने में आता है कि अब चार दिन के लिए व्यर्थ हाय २ करते हो। पानी भरी खाल का क्या भरोसा है। आज मरे कल दूसरा दिन । खाव और पड़े २ राम २ किया करो। अर्थात् बूढ़ों और बालकों को दुनिया से कुछ संबंध नहीं। जगत के जितने सुख दुख, भोग बिलास, ऊंच नीच व्यवहार हैं, सब जवानों के लिए हैं। इन्हें कोई नहीं कह सकता कि तुम अभी क्या हो, वा तुम्हें इस जगत के भ्रमजाल से क्या ? यदि महा धन्यजन्मा हुए और सब तज, हरि भजन में लग गए अथवा निरे तुच्छजीवी हो के, किसी काम हो के न हुए तो तो और बात है (इन दोनों प्रकार के लोग बिरले ही होते हैं) नहीं तो इस अवस्था वालों का क्या कहना है ! दुनिया में जितने मजे हैं, जितने रस हैं, जितने स्वादु हैं, सब इन्हीं की तो है। मिलना न मिलना परमेश्वर के हाथ है। पर बुद्धि सदा यही कहा करती है 'सर कर दुनिया की गाफिल, जिंदगानी फिर कहाँ । जिदागानी भी हुई तो यह जवानी फिर कहाँ ।' मन देवता बिराट रूप धारण करे रहते हैं । मिले चाहे न पर हौसिला यही रहता है कि कुबेर का खजाना, इंद्रलोक की अप्सरा, स्वर्ग भरे के भोग, सब अपनी ही मूठी में कर लें। परमेश्वर सहृदयता दे तो मजों की कमती नहीं है। यदि आप सतोगुणी हैं तो भगवान के भजन, सजनों के समागम में, सद्ग्रंथों के श्रवण मनन में कैसा आनंद पावेंगे! यदि रजोगुणी हैं तो अच्छे से अच्छा कपड़ा, स्वादिष्ट से स्वादिष्ट भोजन, उमदा से उमदा घर सजाने का असबाब, एक से एक सुंदर व्यक्ति, रस भरी कविता, राग भरे गान, बागों की सीतल मंद सुगंध पवन, मादक वस्तुओं की वरंग इत्यादि में कैसा कुछ प्रमोद प्राप्त करेंगे । यदि तमोगुणी