पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१३८

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[ प्रतापनारायण-ग्रंथावली
 

[ प्रतापनारायण-ग्रन्थावली बजा। माज अंगरेजों की तूती बोलती है। संसार की यही रीति है कि एक की आज उन्नति है, कल अवनति, परसों और की बढ़ती है। इसी से यह सिद्धांत हो गया है कि ईश्वर सभी की सुध लेता है। पर हमारे प्रेमशास्त्र और प्रत्यक्ष प्रमाण के अनुकूल इसमे भी कोई संदेह नहीं कि कोई कैसा ही क्यों न हो, यदि हम उससे सच्ची प्रीति करेंगे तो वुह भी हमारा हो जायगा। इस न्याय से विचार देखिए तो हमारे देश को जितना परमात्मा के साथ संबंध सदा से है, औरों का कभी न रहा है, न है, न होने की आशा है। "सर्व खल्विदं ब्रह्म' 'सर्वदा सर्वभावेन भजनीयो ब्रजाधिपः', 'सब तज हरि भज' इत्यादि वाक्यों का तत्व समझना तो दूर रहा, ऐसे महामान्य वचन ही मन्य देशीय धर्मग्रन्थ मे कठिनता से मिलेंगे। इसी भरोसे पर हम यह दावा कर सकते हैं कि हम ईश्वर से अधिक मेल रखते हैं, और इसी से ईश्वर भी हमसे अधिक ममत्व रखता है। इसका प्रमाण भी हमे लेने नहीं जाना, हम सिद्ध कर देगे कि जितने काल, जितनी श्रेणी तक सर्वभाव से आर्य देश की उन्नति रह चुकी है, वसी अभी तक किसी ने सुनी भी न होगी। आजकल अवनति है सही, पर ऐसी अवनति भी नहीं है जैसी इतरों की किसी समय थी और परमेश्वर ने चाहा, एवं धीरे २ ऐसे ही उद्योग होते रहे जैसे गत बीस पचीस वर्ष से देखने सुनने मे आते हैं तो आशा होती है कि इन दिनों की सी दुर्दशा भी हजार वर्ष तक न रहेगी! सब से अधिक राम को दया का चिह्न यह है कि इन गिरे दिनो मे, जबकि हमारे गुण भी प्रायः दुर्गुण से होते रहे हैं, अब भी सहनशीलता, सरलता, धर्मदृढना, स्वच्छता, यप्रियता, सूक्ष्म विचार आदि कई एक बातें जो विचारशंलो ने माननीय मानी है, उनमे हम अनेक देशों से चढ़े बढ़े हैं । अभाव हमारे यहां आज भी किसी बात का नहीं है । जो बात अच्छी तरह समझा दी जाती है उसके मानने वाले मिली रहते हैं। हाँ, अपनी ओर से लाभकारक बात सर्वसाधारण को सूझती नहीं है। पर सुझाने के साथ ही उस विषय में हम औरो से बढ़ नहीं जाते तो बराबर तो भी हो जाते हैं। क्या यह लक्षण भले नहीं हैं ? इसे जाने दो, यहाँ की जलवायु और पृथ्वी भी ऐसी है कि सब हालत में गुजारा चल सकता है। हां, संसारचक्र के "पतनांत समुच्छयः" के नियमानुसार यह बात अवश्य होनी है कि रहंट का ऊपरवाला खटोला जब तक नीचे न हो जाय तब तक ऊपर फिर नहीं चढ़ता। इस न्याय से कुछ दिन अधःपतन योग्य था। पर प्यारा लड़का काई अपराध करै तो भी दयालु पिता अधिक काल उसे कष्ट में न देख सकेगा। दुह दिन अब बहुत दूर नहीं है कि हमारी दुरवस्था पूर्ण रीति से दूर हो जाय । विश्वास के साथ देशहित मे लगे रहना हमारा काम है। सब बातें जाती सी रही हैं, तो भी यदि हम अपनी निजता को न जाने दें तो हमारे दिन फिरने में शंका नहीं है । क्योंकि संसार का नियामक जो है उसके साथ हमारा अधिक अपनपी है। यदि ईश्वर कोई जाग्रत एवं चतन्य गुण वाले का नाम है तो हमारे पूर्वज रिषियों का नाता सर्वथा भुला दे, यह संभव नही । और यह संभव है कि हमारे साढ़े तीन हाथ के पुतले में