पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

खड़ी बोली का पद्य ] ११७ उनका कुछ भी अंश न हो । हां, हम अपने हो को मूल जायें तो और बात है । नहीं तो यह बात अधिक प्रमाणीभूत है कि हमारी उन्नति औरों को उन्नति से अधिक यो ओर अधिक काल तक रही है। हमारो अवनति औरों को अवनति से न्यून है और उतने दिन रहना विचार से दूर है जितने दिन औरों को रही है। कोंकि इस बात में संदेह नहीं है कि ईश्वर से हमको और हमसे ईश्वर को औरों में अधिक अपनायत है। यदि यह बात युक्ति और प्रमाणों से न भी सिद्ध हो सके (यह केवल अनुमान कर लो) तो भी यदि हम आस्तिक हैं तो हमें विश्वास कर्तव्य है कि 'मोर करहिं सनेह बिसेवी प्रीति परीच्छा देखी। खं० ४, सं०७ (१५ फरवरी ह० सं० ४) खड़ी बोली का पद्य इस नाम को बाब अयोध्याप्रसाद जो खत्री मुनकफरपुरवासो कृत पुस्तक के दो भाग हमें हमारे मुहबर श्रीधर पाठक द्वार प्रान हुए हैं । लेखक महाशय को मनागति तो सराहना योग्य है पर साथ ही असम्भव भी है। सिवाय फारसो छंद और दो तीन चाल की लावनियों के और कोई छंद उसमें बनाना भी ऐसा है जैसे किसी कोमलांगो सुन्दरों को कोट बूट पहिनाना । हम आधुनिक कवियों के शिरोमणि भारतेन्दु जो से बढ़के हिन्दी भाषा का आग्रही दूसरा न होगा। जब उन्हीं से यह न हो सका तो दूसरों का यत्न निष्फल है। बांस को चूसने से यदि रस का सवाद मिल सके तो ईख बनाने का परमेश्वर को क्या काम था। हां उर शब्द अधिक न भर के उरद के ढंग का सा मजा हम पा सकते हैं और उरद कविताभिमानियों से हम साहंकार कह सकते हैं कि हमारे यहां का काव्य भी कुछ कम नहीं है । यद्यपि कबिता के लिए उरदू बुरी नहीं है, कवित्व रसिकों को वह भी बारललना के हावभाव का मजा दे जाती है, पर कवि होते हैं मिरंकुश, उनकी बोली भी स्वच्छंद रहने से अपना पूरा बल दिखा सकती है। जो लालित्य, जो माधुर्य, जो लावन्य कवियों को उस स्वतन्त्र भाषा में है जो बृजभाषा, बुंदेलखंडी, बैसवारी और अपने ढंग पर लाई गई संस्कृत व फारसी से बन गई है, जिसे चन्द्र से ले के हरिश्चन्द्र तक प्रायः सब कवियों ने आदर दिया है, उसका सा अमृतमय चित्तचालक रस खड़ी और बैठी बोलियों में ला सके यह किसी कवि के बाप की मजाल नहीं। छोटे मोटे कवि हम भी हैं और नागरी का कुछ दावा भी रखते हैं, पर जो बात हो ही नहीं सकती उसे क्या करें। बहुतेरे यह कहते हैं कि बृजभाषा को कविता हर एक समझ नहीं सकता। पर उन्हें यह समझना चाहिए कि आप को खड़ो बोलो हो