पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१४५

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ककाराष्टक ] १२३ मन को मार के खुशामद से टाले जाते हैं। भविष्यत का मान परमेश्वर को है, क्या जाने उसकी इस लीला में कौन गुप्त भेद है। पर हमारा विचार यह है कि जैसे-जैसे यह वर्ष पूरा हो तो ब्राह्मण को ब्रह्मलोक भेजें और यथासाध्य नादिहंदों से रुपया वसूल करें, फिर वर्ष छः महीने में ऋणहत्या छुड़ावें । खुशामद होती नहीं, मांगना आता नहीं, फिर यह आशा कैसे करें कि कोई हमारा बोझ हलका करेगा। हंसी खुशी हमारा मूल्य ही दे दें तो उन्होंने मानों सब कुछ दे दिया ! यह संपादकों की महा कथा का एक अध्याय संक्षेप से इसलिए सुनाया है कि हम लोगों की दशा सबको विदित हो जाय। हम गंगा में पैठ के कह सकते हैं कि यह झूठ नहीं है। जब कि हमारे छोटे से पत्र की केवल चार वर्ष में यह गति है तो हमारे मान्यवर 'हिन्दी-प्रदीप' का हाल, समझते हैं, हमसे भी बुरा होगा! 'ब्राह्मण' से दना उसका आकार है, चौगुनी उसकी आयु है, उसके सम्पादक श्री बालकृष्ण भट्ट है, वुह हम से भी गई बीती दशा में ठहरे । कुटुम्ब बड़ा, खर्च बड़ा, सहायक सगा बाप भी नहीं। स्पष्टवक्तापन के मारे जबानी दोस्त भी कोई नहीं। ऐसी हालत में सरकार ने १०) रु० टैक्स के ले लिए। हम क्यों न कहें-'मरे को मारे शाह मदार !' वुह बिचारे कौन धंधा करते हैं, जो उन पर टिक्कस ! दस रुपए में क्या सर्कार का खजाना भर गया ! कर्मचारियों की कौन बड़ी नेकनामी हो गई । कौन तनख्वाह बढ़ गई ! कौन पदवी ( खिताब ) मिल गई ! हाय क्या जमाना है कि राजा प्रजा कोई गरीबों की हाय से नहीं डरता! चार बरस हुए कुछ बदमाशों ने हमारे भट्ट महोदय पर अपनी बदमाशी दरसाई थी तब सहायता किसी ने न की। आज रुपया चूसने को सब तैयार हो गए। इंसाफ यदि कोई बस्तु है तो हम लोगों का रजिस्टर देख लिया जाय । पर कौन सुनता है ! हमारी समझ में यह किसी धूर्त कर्मचारी ने किसी गुप्त बैर का बदला लिया है। खं० ४, सं० ९ ( १५ अप्रैल. ह. सं० ४) ककाराष्टक ज्योतिष जानने वाले जानते हैं कि होडाचक्र के अनुसार एक अक्षर पर जितने नाम होंगे उनका जन्म एक नक्षत्र के एक ही चरण का होगा और लक्षण भी एक ही सा होगा। व्यवहार संबंधी विचार में ऐसे ना के लिए ज्योतिषियों को बहुत नही विचारना पड़ता। बिना बिचारे कह सकते हैं कि एक राशि, एक नक्षत्र, एक चरण के लोग मिल के जो काम करेंगे वुह सिद्ध होगा। लोक में भी नामराशी का अधिक संबंध प्रसिद्ध है। इसी विचार पर सतयुग में सत्य, सज्जनता, सद्धर्मादि का बड़ा गौरव था। हमारे पाठक जानते होंगे श्री महाराजाधिराज कलियुग जी देव