पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१५७

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दबी हुई भाग ] १३५ उत्पन्न कर दिया, जिनके बचनरूपी बरुणास्त्रों से क्रिस्तानी की भयानक अग्नि बहुत कुछ शांत हो गई। अब अधिकतः यह संभव नहीं है कि पढ़े लिखे, प्रतिष्ठित, कुलीन " भेड़ों में शामिल हो के दुर्दैव साहब के दस्तरखान में धर दिए जायं । हम एकबार अनेक विद्वानों के मतानुकूल लिख चुके हैं कि हजरत ईसा एक पूजनीय पुरुष थे और उनके उपदेश भी मानव जाति के महाहितकारक हैं। पर ईसाई हो जाना या यों कहो कि पादरियों के मायाजाल में फंस जाना ऐसा अनिष्टकारक है कि मनुष्य देशहित और जाति हित से सर्वथा बंचित हो जाता है। हमारे ईसाई भाई जिस जाति और जिस देश के भए उपजे हैं, उससे न उन्हें कुछ ममता रहती है म प्रेम, फिर उनसे क्या आशा की जाय । इस बात को हम्ही नहीं समझते, ईश्वर के अनुग्रह से सहस्रों लोग समझने लगे हैं। यह बात अब समझदारों को समझ में आना दुर्लभ है कि महात्मा मसीह ने मुक्ति का ठेका ले लिया है। विश्वास की महिमा से तो ईसा क्या हम चौराहे की इंट पूजने वालों की भी प्रतिष्ठा करते हैं, पर मजबाद में हिंदुओं से अब पादरी साहबों का जोतना डबल रोटी का गुस्सा नहीं है ! ऊपर से पादरी लोग हमारे ईसाई भाइयों का पक्ष नहीं लेते । बहुत से मसीरी दाने २ को मुहताज हैं । इससे और भी सर्वसाधारण की अश्रद्धा हो गयी है। पर छोटे २ कोमल प्रकृति वाले नासमझ बालकों को बचाना हम हिंदू मुसलमानों का परम कर्तव्य है। उन्हें, परमेश्वर न करे, पादरियों की चिकनी चुपड़ी बातें असर कर जाये तो हमारी नई पौध निकम्मी हो जायगी। यही दूरदर्शिता सोच के अनेक सज्जन मिशन स्कूल में अपने लड़कों को नहीं पढ़ाते। क्योंकि वहाँ और पुस्तकों के साथ इंजील भी अवश्य पढ़नी पड़ती है। हम इंजील को बुरा कदापि नहीं कहते, वुह भी एक धर्म का ग्रंथ है, पर उसके पढ़ने बाले यदि अन्य धर्म के द्वेषी न हो! पर हम खेद के साथ प्रकाश करते हैं, कही २ मिशन स्कूलों में चंदन लगाना और गंगा नहाना तक निंदनीय गिना जाता है। अभी हाल ही मे मद्रास के एक मिशनरी साहब ने अपना जूता दिखा के बिचारे आर्य बालकों से कहा था, 'यह तुम्हारे देवता है'। मला ऐसे २ अनथं देख सुन के किसको मिशन स्कूलों को शिक्षा से धृणा न होगी? महा अभागी वुह नगर है, जहां मिशन स्कूलों के सिवा दूसरा स्कूल न हो। हम अपने कानपुर की इस विषय में प्रशंसा करते हैं कि यहाँ बालकों की शिक्षा मिशन ही पर निर्भर नहीं है ! लोग गवर्नमेंट स्कूल और जुबली स्कूल के आछत अपने सन्तान को हिंदू धर्म का अश्रयालु बनावें तो दूसरी बात है, पर सुभीता परमेश्वर ने दे रखा है कि धर्म मे बाधा न डालो और राजभाषा भी पढ़ा लो। हमारी समझ में हर शहर 'के लोगों को चाहिये कि अपने २ यहां कम से कम एक पाठशाला ऐसा अवश्य स्थापित करें जिसमें केवल हिन्दू मुसलमानों का अधिकार रहे और अन्य शिक्षा के साथ धर्म तथा नीति भी सिखाई जाय। इससे क्रशचानिटी को प्रत्यक्ष आग का रहा सहा प्राबल्य भी जाता रहेगा। पर एक दबी हुई आग ऐसी पड़ी है जिस पर कोई ध्यान नहीं देता। अभी उसका बुझाना सहन है, नहीं पीछे बड़ो भारी हानि करेगी ! स्कूलों में बहुधा स्याने लड़के भेजे जाते हैं और वहां की आग भी धधकती हुई है । इससे इतना डर नहीं