पृष्ठ:प्रतापनारायण-ग्रंथावली.djvu/१६३

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कलि महं केवट नाम प्रभाऊ ] १४१ सीता जी के समान स्त्रियां पूजनीया हैं जो पति प्रेम निभाने को बरसों के कठिन दुख को सुख से शिरोधार्य कर लें, राज्य सुख को पतिमुखदर्शन के आगे तुच्छ समझें । सती जी सी गृहदेवी माननीया हैं जो पति का अपमान न सह सकें चाहे सगे बाप का मुलाहिजा टूट जाय, चाहे प्राण तक जाते रहें। पर ऐसी गृहेश्वरी होती कहां हैं सतयुग तादि में भी एक ही दो थी, अब तो कलिकाल है ! यदि मान लें कि कदाचित कही कोई ऐसी निकल आवे तो उस पुरुष का जीवन धन्य है ! वुह चाहे जैसा धीन हीन हो पर आत्मपीड़ा से बचा रहेगा और जो लोग साम दाम दंड भेद से अपनी महा अनुकला बना सकें वुह भी धन्य हैं ! पर वह दोनों बातें असभव न हो तो महा कठिन हई हैं। पहली बात तो 'राम कृपा विन सुलभ न सोई'। दूसरी बात के आसार भारत की वर्त- मान दशा से कोसों दूर देख पड़ते हैं । न जाने इतने देशभक्त, व्याख्यानदाता, इतने पत्र सम्पादक स्त्रियों के सुधार में बरसों से क्यों नहीं सन सकते । पुरुषों के लिए सब कहीं पाठशाला, इनके लिए यदि हैं भी तो न होने के बराबर । यदि आज सब लोग इधर झुक पड़ें तो शायद कुछ दिन में कुछ आशा हो, नही आन दिन के देखे तो हमें यही जान पड़ता है कि अर्धांगी स्त्री का नाम इसलिए रक्खा गया है कि जैसे अर्धागी नामक बीमारी से स्थूल शरीर आधा किमी काम का नहीं रहता वैसे ही इस अर्धागी के कारण मन, बुद्धि, आत्मा, स्वातंत्र्य, उदार चित्ततादि आधी (नहीं, बिलकुल) निकम्मी हो जाती है ! मनुष्य केवल भय निद्रादि के काम का रह जाता है, सो भी निज बस नहीं। खं० ५ सं० १ और २ ( १४ अगस्त, सितंबर ह० सं० ४) कलि महं केवल नाम प्रभाऊ श्री गोस्वामी तुलसीदास जी रामायण में कहते हैं कि कलिकाल में केवल भगवान का नाम स्मरण करते रहो, बस इसी में सब कुछ है। हमारी समझ में यह वचन अत्यन्त सत्य है। यदि प्रभु के किसी माम का स्मरण हमे सब काल बना रहे तो हम अशेष बुराइयों से बचे रहें । सर्वव्यापक नाम के स्मरण से किसी गुप्तातिगुप्त स्थान पर भी वुह काम करने का साहस न पड़ेगा जिसे अनेक विद्वानों ने बुरा ठहराया है। सर्वशक्तिमान के स्मरण से हम को चाहे जैसी ऊंच नीच आ पड़े, कभी घबराहट न होगी, क्योंकि वुह हमारे सब अभाव को दूर कर सकेंगे। प्रेमस्वरूप के स्मरण से हमारे चित्त को एक प्रकार की मस्ती बनी रहेगी और जगत् आनन्दमय देख पड़ेगा। ऐसे ही राम, कृष्ण, शिवादि अगणित नामों से असंख्य भलाई हो सकती है पर जब हम अर्थविचारपूर्वक भगवन्नाम स्मरण करेंगे तब नाम के प्रभाव से कलियुग का प्रभाव नहीं रहेगा। इस से ऊपर कहे हुए बचन का ठोस अर्थ यह है कि भक्ति का प्रभाव,